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अजीब दिन!



इन दिनों कुछ हम अजीब हो गए हैं

ख़ुद के कुछ कम अज़ीज़ हो गए हैं!.


नज़दीकी के सब लम्हे घुड़सवार हैं,

ऐसे अब हम नाचीज़ हो गए हैं!



हर बात के लिए अब वक्त काफ़ी है,

बड़े फुरसती अपने नसीब हो गए हैं!


अब सारी बातें हवा में हो रही हैं,

यूँ लोग इस दौर क़रीब हो गए हैं!




घर बैठे सब ख़ानसामा बन गए हैं,

जायके आज सारे लज़ीज़ हो गए हैं!


तन्हाई के सारे मायने बदल गए हैं, 

घर के आईने सारे रक़ीब हो गए हैं!



हाक़िम की ज़िद्द की वो हकीम हैं!

मुल्क कितने बदनसीब हो गए हैं!


मजलूम सब सामान बन गए हैं, 
खरीद-फरोख्त की चीज़ हो गए हैं!




यूँ लगता है पूरा दौर ही बीमार है, 
सोच के अपनी सब मरीज़ हो गए है!


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