अपने ही इरादों की हम भूल हैं,
जो गुनाह कहिए हमें कबूल हैं!
खून उबलता ही नहीं है, चाहे जो,
जज़्बात हमारे बड़े नामाकूल हैं!
दम तोड़ रहे हैं तमाम सच हरदिन,
और हम बस बातों के फिजूल हैं!
दर्द सारे के सारे बेअसर हो चले हैं,
और कहने को हम बड़े "कूल" हैं!
आम कत्ल हैं और ख़ास जेल में,
आज़ाद हमारे मध्यमवर्गी उसूल हैं!
फर्क पड़ता, भवें तनती ओ सांस तेज,
फिर हम पूरे निक्कमेपन के वसूल हैं!
आबोहवा में जहर घोलती है दुनिया,
और हम 'एक' बदलने में मशगूल हैं!
जो गुनाह कहिए हमें कबूल हैं!
खून उबलता ही नहीं है, चाहे जो,
जज़्बात हमारे बड़े नामाकूल हैं!
दम तोड़ रहे हैं तमाम सच हरदिन,
और हम बस बातों के फिजूल हैं!
दर्द सारे के सारे बेअसर हो चले हैं,
और कहने को हम बड़े "कूल" हैं!
आज़ाद हमारे मध्यमवर्गी उसूल हैं!
फर्क पड़ता, भवें तनती ओ सांस तेज,
फिर हम पूरे निक्कमेपन के वसूल हैं!
आबोहवा में जहर घोलती है दुनिया,
और हम 'एक' बदलने में मशगूल हैं!
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