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फ़रवरी, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एलिमेंट्स

  कोई लड़ाई नहीं है, हवा पानी पहाड़ में, जमीन आसमान में, आग और पानी में? पानी बुझा देता है, आग उड़ा देती है आपको लगता है ये लड़ाई है? खासी तंग सोच पाई है! यही सोच तहज़ीब बनी है, तरक्की का बीज बनी है, पीछे छोड़ देना, आगे जाने की शर्त है, ये कैसी यही कवायद है? आखिर सीखा क्या हमने, कुदरत से? पानी और आग की दोस्ती? जब साथ आते हैं,  हवा हो जाते हैं! हवा और पानी  जमीन की सवारी हैं, सदियों से ये सफर जारी है! कोई किसी से कम नहीं, न कोई किसी पर भारी! हर कोई वजह है,  जगह नहीं, पानी, हवा, आग, जमीन, कायनात के कलाकार हैं, कई प्रकार है, तमाम आकार हैं, और जहां जरूरी हो, शून्य, सिफर होने तैयार हैं! बड़ा छोटा, कम ज्यादा, आगे पीछे, ऊपर नीचे इस द्वंद, इस जंग में फंसे आप कब इन कलाकार से सीखेंगे??

सुबह!

उस मोड़ पर सुबह थी,  उस छोर पर सुबह थी, किसी रात की सुबह थी, कुछ बात है सुबह थी, घनघोर बादल के साथ, या उन्हें छोड़ कर सुबह थी? बावजह थी या बेवजह, सबके साथ ये सुबह थी.. आप कहां हैं, कहां आपकी सुबह थी? जाग रही थी साथ,  या दूर भागती सुबह थी? उस मोड़ पर हम थे, हाथ आयी सुबह थी, मिला रही थी कांधे, एक रास्ता सुबह थी, दिला रही थी यकीन, सहर से शाम सुबह थी, रखी थी पीठ पर हाथ, बड़ी इफरात सुबह थी!

खामोशी!

  खामोशी की आवाज सुनी है कभी, उसमें आहट भी एक शोर होती है, एक आह भी घनघोर होती है, कोई कराह दे तो जैसे दर्द के सागर झलकें, कोई सराह दे तो सर आसमान, खामोशी में बड़ी जान होती है, सुनिए, मुश्किल आसान होती है! खामोशी से चाह हुई है कभी? कि उसमें इंतजार भी एक सफ़र है, नज़र उठ जाए तो सहर है, झुक जाए तो कहर है, मुस्कराहट चार पहर है, साहिल से "दो·चार" लहर है! खामोशी की राह चुनी है कभी? नज़र ही इकरार है, नज़र ही इंकार है, नज़र ही इसरार है, नज़र ही नफ़रत, नज़र ही प्यार है! गौर कीजिए क्या आसार है? खामोशी से बात की है कभी? उसको सुनना भी कहते है! और फिर गुनना भी, रिश्ता बुनना भी कहते हैं, सही लम्हा चुनना भी, खामोशी मांगी नहीं जाती, सब के पास है, बहुत काफी और काफ़ी खास है! रुकिए ज़रा, दो घड़ी ठहरिए, सुनिए खुद को, श श शश, खामोशी बोल रही है!

किसका खेल?

  सब साथ के खेल हैं, जाने-अंजाने  चाहे– अनचाहे, गाहे–ब– गाहे  सवाल ये है, कि  आप कैसे खेल रहे हैं? दुनिया की चाल चल, फेल रहे हैं? . या, अपनी मर्जी से मेल रहे हैं? आप काफ़ी हैं या कम? आइने क्या बोल रहे हैं? तराजू किसका है और, किस हाथों तौल रहे हैं? सुना होगा,  दुनिया एक होड़ है, चूहे वाली दौड़ है, लगे रहो, एक दो एक, एक दो एक... सवाल ये है कि  चाल किसकी है ? आप चुन रहे हैं मोड़, या रस्ते आपको मोड़ रहे है? आप खेल रहे हैं, या खेल किसी और का, आप झेल रहे हैं? आप कैसे खेल खेल रहे हैं?

भीड़ भेड़ भगवान!

  भीड़ भगवान हो गई है, तीर्थस्थान हो गई है, कुंभ का स्नान हो गई है, मोक्ष का सामान हो गई है, स्टेशन बैठे चार धाम हो गई है! किस ने सोचा था? ये दिन भी आयेगा, बराबरी की लड़ाई, ऐसी टु के कोच लड़ी जाएगी, जिसकी लाठी उसकी सीट हो जाएगी, हक की बात इतनी आसान हो जाएगी, भीड़ ही संविधान हो जाएगी! कुंभ जाने की ये विधि  विधान हो जाएगी! सब एक हो गए हैं, एक संदेश, एक दिशा (भ्रम), मंदिर वहीं बनायेंगे, मस्जिद वहीं गिराएंगे, उसी मुहूर्त नहाएंगे, करोड़ों की भीड़ बनेंगे, सब भेड़ हों जाएंगे!