भीड़ भगवान हो गई है,
तीर्थस्थान हो गई है,
कुंभ का स्नान हो गई है,
मोक्ष का सामान हो गई है,
स्टेशन बैठे चार धाम हो गई है!
किस ने सोचा था?
ये दिन भी आयेगा,
बराबरी की लड़ाई,
ऐसी टु के कोच लड़ी जाएगी,
जिसकी लाठी उसकी सीट हो जाएगी,
हक की बात इतनी आसान हो जाएगी,
भीड़ ही संविधान हो जाएगी!
कुंभ जाने की ये विधि
विधान हो जाएगी!
सब एक हो गए हैं,
एक संदेश, एक दिशा (भ्रम),
मंदिर वहीं बनायेंगे,
मस्जिद वहीं गिराएंगे,
उसी मुहूर्त नहाएंगे,
करोड़ों की भीड़ बनेंगे,
सब भेड़ हों जाएंगे!
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