सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

खामोशी!

 


खामोशी की आवाज सुनी है कभी,

उसमें आहट भी एक शोर होती है,

एक आह भी घनघोर होती है,

कोई कराह दे तो जैसे दर्द के सागर झलकें,

कोई सराह दे तो सर आसमान,

खामोशी में बड़ी जान होती है,

सुनिए, मुश्किल आसान होती है!





खामोशी से चाह हुई है कभी?

कि उसमें इंतजार भी एक सफ़र है,

नज़र उठ जाए तो सहर है,

झुक जाए तो कहर है,

मुस्कराहट चार पहर है,

साहिल से "दो·चार" लहर है!


खामोशी की राह चुनी है कभी?

नज़र ही इकरार है,

नज़र ही इंकार है,

नज़र ही इसरार है,

नज़र ही नफ़रत, नज़र ही प्यार है!

गौर कीजिए क्या आसार है?





खामोशी से बात की है कभी?

उसको सुनना भी कहते है!

और फिर गुनना भी,

रिश्ता बुनना भी कहते हैं,

सही लम्हा चुनना भी,

खामोशी मांगी नहीं जाती,

सब के पास है, बहुत काफी

और काफ़ी खास है!


रुकिए ज़रा, दो घड़ी ठहरिए,

सुनिए खुद को,

श श शश,

खामोशी बोल रही है!




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।