दूर आए, नजदीकियों के नज़दीक आ गए,
फ़ांसले नहीं हैं फिर भी करीब आ रहे हैं!
नज़र को नज़र में नज़र आ रहे हैं,
दोनों ही अपने शौक फरमा रहे हैं!
मिल कर मन के मौसम बना रहे हैं,
और वहीं हैं हम, जहां जा रहे हैं!
पहुंचना नहीं है कहीं पर जा रहे हैं,
मुश्किल हैं रास्ते पर रास आ रहे हैं!
मंजिलों के सौदागर बस बहका रहे हैं,
रास्ते कहां जाएंगे, हम कहां जा रहे हैं?
हम फकत इन रास्तों से आ जा रहे हैं,
यूं धूप–छांव दोनों शौक फरमा रहे हैं!
रास्ते ही हमको ठहरा रहे हैं, पूछें
पहुंचना नहीं है तो कहां जा रहे हैं?
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