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मैं और मेरा सरमाया!


मेरा "मैं" होना,
और "मैं" मेरा होना,
जो मैं हूँ, पहले से, होते हुए,


एक सफर है,
सीखे को भुलाने की,
जो 'यही होता है' समझने की,
उसके आगे जाने की,
"जाने दो",
जाने दूं?


कभी ये सवाल है, सवाल हैं?
कभी एहसास,
हर लम्हा मैं खुद को सुनती हूँ,
गुनती हूँ, बुनती हूँ,


कभी मैं हूँ,
कभी मैं नहीं, फिर भी,
मैं ही हूँ मेरे होने में,
पाने में कभी खोने में,
पूरी एक दुनिया नज़र आती है,


जब मैं,खुद में गहरे जाती हूँ,
क्या सच, क्या माया,
जो सोचा कहाँ से पाया,
फंतासी या सपना आया?
क्या है मेरा सरमाया!?
किसे ख़बर!?


(ये दोस्त निष्ठा की इंग्लिश अभिव्यक्ति का ट्रांस्पोइट्रेशन है, तस्वीरें भी उसी की नज़र और कैमरे से हैं)

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