घूम रहे हैं या खुद को ढूंढ रहे हैं,
अपने ही कानों में बहुत गूंज रहे हैं!
पास आ गए अपने के दूर हो गए?
आईने कुछ ऐसे चकनाचूर हो गए!
नज़र में हैं खुद की और खुद नज़र आते हैं,
अक्सर हम बड़े खुदगर्ज़ नज़र आते हैं!
यूँ अक्सर हम, हम ही होते हैं,
कभी ज्यादा तो कभी कम होते हैं!
खुद के खारिज़ हैं अक्सर,
क्या शिकवा करें ज़माने से!पुछ रहे हैं अब क्या होगा,
अपने ही अफ़साने से!
अपने ही शौक़ीन न हो जाएँ,
आईने कहीं मेरे यकीं न हो जाएँ!
लगे है रोज "Like" गिनने में,
ड़र हैं कहीं कमी न हो जाये!
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