जो भी जिया उसके मरने की खबर है,
रेबीज़ है,
कुत्ते कि काट से भी ज्यादा घातक,
सुना है, जिंदगी एक बार ड़स ले,
तो उसका असर,
सौ-सौ साल बाद भी नज़र आता है,
बचता कोई नहीं,
जिंदगी से सबका पत्ता कट जाता है,
यानी इंसान दुनिया का सबसे मूरख जीव है,
बेइंतहा कोशिश जिंदगी बढाने की,
नशे की आदत ऐसी कि बस,
'जीना है, जीना है' की रट है,
हम से तो मच्छर, चींटी अच्छे,
जानते हैं चार दिन है या और कम,
फ़िर भी बेखौफ़ इतने
लगे हैं, अपना आज़ संवारने में,
आज भी नहीं - - - अब,
इस लम्हे को बना रहे हैं
सच के आज़ाद,
और पेड़, पौधे
जो एक जगह खड़े-खड़े बड़े हो गये,
न आगे आने की रेस में दौड़े,
न उम्मीद की जो नाउम्मीद छोड़े,
न पलायन की कही कुछ और बेहतर है,
जंहा थे वहीं के हो गये,
ताड़, झुरमुट, बरगद, बबूल,
फ़ूल, पाईन, वाईन(बेल)
इसलिये नहीं कि इनके बाजु
कोई बल गये
बस जरूरत थी सो ढल गये,
कुछ नहीं तो घांस हो कर चरा गये,
दिल बाग-बाग हो गया,
पालक मैथी का साग हो गया,
अपने छोटेपन का बेचारा नहीं बने
चारा बन गये,
दूध बन कर सब की हड़्ड़ियों में उतर गये
और आप लगे है लॉन बनाने में,
हज़ामती खूबसूरती
किस को मुँह चिड़ाती है,
दो दिन पानी नहीं तो
अक्ल ठिकाने आती है!
बेअक्ल हैं,
जो अपनी ताकत का बल भरते हैं,
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