मैंने जाने अपनी कितनी नींदे हराम
की,
किसको नज़र आये चेहरे के रेगिस्थान
क्यूँ अपनी सारी मुस्कराहट शमशान
की?
हमसफ़र, साथ देने के शौक तन्हा कर
गए
हाथ आये फ़ासले जब भी, राय कोई आम
की
शराफत के सब सौदाई, इतनी
इज्ज़त-अफज़ाई
कहाँ खरीददार कोई, जो दुकान-ए-ईमान
की
यूँ माथे की सारी परेशानी
पीक-ए-पान की
चलते रहे, यूँ अपने ही तूफानों के
छोर थाम
हमने कहाँ कभी अपनी, मुश्किल आसान
की
Wah!Kuch lafzon me bahut kuch batein..Good one
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