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धूप छाँव के खेल!

धूप छाँव के खेल हैं सब, जीते क्या हारे?  नाप-तोल की दुनिया के  हम सब बेचारे! धूप छाँव के खेल हैं सब, किस करवट क्या हो? किस मोड़ मुड़ें, क्या चाल चलें, रुख क्या हो? धूप छाँव के खेल ये सब, अब आप बताएं?  सच के ही सब खेल क्या जुगत बिठाएं?  धूप छाँव के खेल, और हर चीज़ खिलाड़ी,  जो बनता होशियार है बस वही अनाड़ी! धूप छाँव के खेल हैं सब, पलक झपक ले प्यारे!  एकही सच पर टिके जो सब, वो मत के मारे!! धूप छाँव के खेल हैं सब, किस ओर चलें?  क्या संग, किस रंग, किस ढंग कौन मिले? धूप छाँव के खेल हैं सब, किसके हिस्से क्या आए? सवाल ये भी आएगा, 'आप! क्या अपनी जगह बनाए?

जान है तो पान है!

जान है तो जहान है ये मूर्खता का ज्ञान है, सरकार ने कहा है तो अंधभक्तों का कान है मिडिल क्लास की रट मेरा भारत महान है! ओ रईसों की वाइन है चमक है शाइन है! भूख में क्या शान है? भीख है या दान है? किसका इसमें मान है? न जमीं अपनी, अजनबी आसमान है, सारे मजबूर एक छत में कहते हैं आप, ध्यान है? मुट्ठी भर चावल, दाल कहाँ? न सब्जी का नामोनिशान है? चल पडे हैं मीलों, कोसों, बेदिल आप उनको कोसें? जानिए, मनोविज्ञान है, जो उनका जहान है वो ही उनकी जान है! गांव, घर, परिवार,  गली चौबार, अपना  समाज व्यवहार सब मिल कर जान है? कोई टापू नहीं अकेला एक पूरा इंसान है! भरोसा किस पर करेंगे? काम बचा नहीं, सरकार सोचा नहीं, बंद हैं बस, ट्रेन, कहते है लॉकडाउन है? लाखों सड़क पर, फ्लायओवर सर पर, थोड़ा मिला बहुत समझना कहाँ कोई सम्मान है? हथेली पर जान है, दोगला जहान है, कारों में, बंगलों में ए सी ऑन है!! किसकी जान है? ये कैसा जहान है? क्या आपको तनिक भी इसका भान है? बंजर है जमीन किसकी? किसकी उम्मीद शमशान है?  भीड़ में अकेले ओ सारे रास्ते वी...

सुबह सवाल!

जो हाथ में नहीं वो साथ क्यों मुश्किल छोड़ना ये बात क्यों? क्यों कहते हैं रास्ते साथ नहीं, रास्ते चलते हैं और आप नहीं? सवाल क्यों शिकार बन रहे हैं? जवाब क्यों हिसाब बन गए हैं? बात अपनी ही अपने से करिए, आप ही रस्ता, अपना यकीं करिए!! जो पुराना नहीं क्या वो नया है? क्या जुड़ा ओ क्या खो गया है? आपके कदमों में रास्ते छुपे हैं, क्या आप अपनी ज़मीं से जुड़े हैं? सफ़र में दर्द भी और गर्त भी, नए मोड़ और हमसफ़र भी! क्यों अपने ही इरादों से लड़ते हैं? ग़ुमराह हक़ीकत, आगे चलते हैं!

ज़िन्दगी ख़ाक की!!

ज़िन्दगी दावत है, किसी को... बग़ावत है किसी की ? आदत है, किसी की मुश्किल, और कोई आसान, काम किसी का, नाम कोई बदनाम, मुफ़्त पहचान सरेआम, अकेले, भीड़ में, दौड़ रोज़ की, होड़, काहे? बेपरवाह, आगाह? अपने सफ़र से, दोस्ती, अजनबी मुसाफ़िर से, चलते रास्ते आपके, भांप के, नाप के किसी और के? किस छोर के? सहारे, या यकीन मंझदारे? सह रहे हैं या बह रहे हैं, ख़ामोश या कह रहे हैं? अपनी बात,  ज़िंदगी ज़ज़्बात, क्या परवा साख की? आखिर ज़िन्दगी ख़ाक की!!

जिंदगी समंदर

सुबह समंदर की, कुछ बाहर से कुछ अंदर की, शांत किसी बवंडर की, सब कुछ है, और कितना कुछ नहीं, ये सच भी है, और है भी सही, कोई है और है भी नहीं, सामने है वो साथ है क्या, माक़ूल ज़ज्बात हैं क्या, खोये की सोचें, या पाए को सींचें, लम्हा हसीं है, पर कैसे एक उम्र खींचें, हाँ है अभी, उतना अपना, जितना आप छोड़ दें, हाथ बड़ाएं तो क्या तय है, वो पल मुँह मोड़ दे, जो है बस वही, आगे कुछ नहीं, ज़िन्दगी समंदर है, लम्हे सारे बंदर, पकड़ने गए तो हम क्या रहे!?

अपनी तस्वीर

फर्क नहीं पड़ता कोई, कि खुदा एक है या कई, जरा बताओ, दुनिया की चारदीवारी के बीच, तुम घर हो, या  न घर के न घाट के? क्या तुम हारना जानते हो,  खुद या किसी और के ज़रिये? क्या तुम तैयार हो जीने के लिए, इस दुनिया में, तुमको बदलने, इसकी सख्त जरुरत के बावजूद? क्या तुम पीछे नज़र डाल ये यकीं से बोल सकते हो कि हाँ मैं सही था!? मुझे ये जानना है, कि क्या तुम जानते हो रोजना ज़िन्दगी को झुलसाने वाली, आग में,  पानी होकर अपनी हसरतों के चक्र्वात में, कैसे पिघलते हैं? मुझे ये बताओ, क्या तुम तैयार हो, जीने के लिए, हर दिन;  रोज़ाना! मोहब्बत के नतीजों से और। और अपनी तय हार से उपजे, तुम्हारे सरसवार कड़वे जुनून से? मैंने सुना है,  इस जकड़ती आग़ोश में,  भगवान भी खुदा का नाम लेते हैं!

तलाश के खोये!

हमें भी शौक है जिंदगी दांव पर लगाने का कोई काम पर इस कदर मुश्किल नहीं मिलता अजब है जिंदगी फ़िर भी एक शिकायत है आँसू पोंछते है साथ कोई रोये नहीं मिलता जिंदगी ने कुछ यूँ भी मंजर दिखाये हैं, सुख बाँटता है जो, वो ही सुखी नहीं मिलता अब शहरों में मेले भी ऐसे लगते हैं, हर कोई मिलता है कोई खोया नहीं मिलता भीड़ में कई पहचाने चेहरे हैं, अकेले कोई पहचाना नहीं मिलता! सहर होती है शहर में, रात कितनी बदनाम हो, सुबह भूला कोई भी किसी शाम नहीं मिलता हर कोई वही चलता है जिसका चलन है! अपने रस्तों का कोई जिम्मेदार नहीं मिलता किसको पूछे कौन बताये, ख्वाब हमारे क्या घर जायें बहुत हलचल है वहां अब कोई सोया नहीं मिलता

मेरे घर आना. . . जिंदगी!

ज़िंदगी , जिंदगी , ओ जिंदगी . . .  मेरे घर आना  .... आना जिंदगी ,  जिंदगी तमाम रस्ते हैं चलने को , छोटे पड़ते हैं खुद से मिलने को कितने दूर ले जायें अदनी हकीकतें , किस मोड़ मिले अपना आईना आना जिंदगी , मेरे घर आना . . . अपने साथ के सब अकेले हैं , अपनी नज़दीकियों से खेले हैं , रिश्तों का मुश्किल नाम रखा है , क्यूँ नहीं बदलता , बदलता मायना . . . आना जिंदगी , मेरे घर आना . . . रिश्ते लंबाइयों के मोहताज़ नहीं , दो पल का साथ क्या साथ नहीं , चंद लम्हों के लिये जुड़ जायें , करें मुमकिन साथ गुनगुनाना आना जिंदगी , मेरे घर आना . . . टूटी खबरें सारी , क्या जोड़ पायेंगी कब अपनी मुस्कानें हमें रुलायेंगी चलिये अपने यकीन को पालें , पा लें , गुज़ारिश है कहें हमको दीवाना , आना जिंदगी , मेरे घर आना . . . 

गलत गुमानियाँ!

युँ अपने दिल पर नज़र होगी ,  किस आहट से धड़कन असर होगी पास आयेंगे तो पूरी कसर होगी ,  गुजरते लम्हों की रहगुजर होगी! उम्मीद को आसमाँ क्यों बनाएं ,  यकीन को जमीं कीजे कल क्यों पेशानी पर लिखा है , आज सफ़र को हसीं कीजे! हसरतें दर - बदर भटकती हैं ,  नज़रों को क्या दोष कीजे , आदतें सामने सर पटकती हैं , कैसे नये रस्ते जोश कीजे ! सहुलियतें सारी परेशान हैं , क्यों मुश्किलें युँ आसां होती है , दुनियादारी की तमाम सलाहियतें  बस युँ ही नादां होती है! जिन्दगी हाथों में , नज़र आती है , उम्मीद , बातों में नज़र आती है सच्चाई , हंसती खेलती दिखती है , इबादत , इरादों में नज़र आती है! ये साथ मिल कर बनाया है ,  दरो - दीवार अपनी हमसाया हैं काम बहुत, कब तक आगोश में बैठें ,  जतन से ये घोंसला बनाया है!

एक सुबह _ _ _ कोई एक!

अलसाये हुए ख्वाब, मुंदी हुई आंखे किसको फ़ुर्सत है कि सुबह करे एक अंगड़ाई लें, चलो आज फ़िर दोपहर करें !  पहलु से कुछ लम्हे, अभी निकले हैं, कुछ लम्हॊं को, ज़ज्ब  करने! जो हमेशा मेरी करवटॊं के साये हैं और एक मुस्कराहट, जो बिखर के आज़ाद है, किसी भी कंधे बैठने को, कैसे कहुं ये मेरी है! हालात कि, ज़ज्बात की, या अभी अभी जो गुजर गयी, एक नन्हे लम्हात कि! और ये आराम नहीं है, सिर्फ़ पैर पसारे हैं, हाथ खड़े नहीं किये, जिंदगी दौड़ नही है, क्या समझेंगे वो, जिनके रास्तॊं को मोड़ नहीं हैं!  झुले जिंदगी के, कुछ भुले नहीं हैं, दो घड़ी अलसाये हैं, ललचाये नहीं हैं, हुँ! शायद थोड़ा सा, एकटु! पर थोड़ी आंखे भी खुली हैं, अभी-अभी सुबह धुली है, सुखने तो दीजे, फ़िर आज़ को इस्त्री करेंगे, स्त्री है, तो क्या? जरुरत को मिस्त्री करेंगे!  और सुबह अकेली हो जाती, सो हम ठहर गये, चंद करवटें, कुछ‌ अंगड़ाई, क्या हुआ जो पहर गये, अपनी ही सांसॊं का, धड़कन का, साथ हम ही नहीं देंगे क्या?  एक दुनिया ये भी है, जो भागती नहीं, बिन आँखें बंद किये जागती नहीं, जहां रुकना आराम नहीं है(हराम वाला) सिर...

दिन रात

रात बैठी हे सिऱहाने पर, तुली है आखॊं में आने पर पर जहन मश्कुर है, कैसे बैठे जमाने के पैमाने में सुबह पैरॊं तले सिकुडी पड़ी है, ये घडियों की गुलामी बड़ी है अपनी कौन सी अड़ी है, गुजर जाये जो जल्दी पड़ी है! शाम ऐसे इतरा रही है, जैसे गुजरना ही नहीं है, दिन गया तो रात सही, कुछ करना ही नहीं है. धुंध छाई है, आज रौशनी ही परछाई है, ये कैसी सुबह है, सूरज ने ली अंगडाई है सुबह कि ठंड से जल गया सूरज, मन ठान के फिर चल गया सूरज, ओड़ती चादरॊं ने अहं को आवाज़ दी, चल गयी दुनिया, जल गया सूरज रात के पहलु में बैठे दिन कि बात करते हैं, ठिठुरती दीवारों में ख्यालॊं कि राख करते हैं, ठहरी अंगडाईयॊं को कहाँ कुछ खबर है, यूँ ही हम अक्सर बात करते हैं ! एक दिन की तीन करवट, हर मुश्किल नहीं पर्वत कुछ हलचल है दिल की, कुछ जहन ने की हरकत

किसकी चाल चले?

रौशनी की कमी नहीं फिर उम्मीद क्यों लडखडाती है, मील के पत्थर मक़ाम नहीं होते, बाज़ार में क्यों ढूंढते हो? सचाई, भरोसा, ईमान, दुकान नहीं होते किस बोझ से झुके हो, दिल के अरमान सामान नहीं होते! आसमान खुद जमीन पर आता है, सदियों से सावन कहलाता है जीते हैं, इसलिए भाग रहे हैं या भागने के लिये जीते हैं? चूहे रेस नहीं लगाते जिंदगी जीते हैं. कोई चाल चलिए अपने अंजाम पर पहुंचेगे खरगोश होने के लिये कछुओं की जरुरत नहीं, फुर्सत की सांस अहंकार नहीं होती! सरल सा प्रश्न है ! आप जिंदगी भाग रहे हैं? ....या जाग रहे हैं?????

गफलत ए हालात!!!!

आवाज़ गूंजती है परदे पड़ी दीवारों पर, मर्ज़ जाहिर है नज़र अंदाज़ बीमारों पर बदलती करवटें, बैचैन सलवटें, रात अपने आगाज़ पर है खामोश होते और चंद लम्हे , आज अपने आगोश में है मदहोश लम्हों तुम हमसे ज़रा दूर ही बैठो बहकने के दिन कहाँ, जिदंगी जरा होश में है होश में है जिंदगी, जाने कहां-कहां भटकायेगी, क्या खबर, ये मुलाकात खुद से, रास आयेगी? सवालों की कवायत है या कारवां ए इनायत है ? दम टूटेगी या फ़क्त जहन की हरारत है ? इरादतन कुछ कह दिया, या ख़ामोशी ए क़यामत है कलम से इश्क है या लफ़्ज़ों की शहादत है खोने में मशरुफ़, या होने को मजबूर, अपनों के पास नहीं, और अपने से दूर जो कहा है कहीं भी उस में, मैं कहीं जरुर हुँ होने को मशकूर हुँ , या न होने को मशहुर? आज भी "मैं" ही हूँ, अपनी अभिव्यक्ति में कैद, अपने जज़्बातों से क़त्ल, अपने अंदर ही मृत (जिंदगी के समंदर से इकट्ठे किये शंख, सीपी, इत्यादि इत्यादि )

सफ़र-ए-ताल्लुक!

किस मोड़ पर हमसफ़र होंगे,  मैं पहुँचती/ता हूँ,  उम्मीद है आप खड़े होंगे? कितना मुश्किल है बनते हुए रिश्तों की लकीरों पर चलना एहसास को क्यों शरीर चाहिए, क्यों लम्हों के अमीर चाहिए नज़दीक आने कि तमाम मुश्किलें हैं, मोहब्बत को फकीर होना चाहिए समस्या बहने कि नहीं बहते हुए रहने कि, चलो हम बह भी गए तो साहिल क्या होगा गुजरते वक़्त को कायल क्या होगा और रुक गये तो हासिल क्या होगा "इश्क" है जाहिल तेरा क्या होगा दूरियों के सब फर्क मिटा दें तो क्या हाथ आएगा  हांसिल होगा कुछ या होंसला बढ़ जायेगा नजदीक आयेंगे या फ़ासला आ जायेगा एक होँगे या आसरा बढ़ जायेगा पहचान आप से और अपने आप से मेरे हिस्से कि जमीं, और आप कि नजदीकियां मुझे अपने फासले पसंद हैं. नज़दीक होँ  तो आपको नज़र आयें, एक रास्ते भी हैं और सफ़र भी अलग नहीं पर मोड़ आने से पहले कैसे मुड़ जाऊं. जाहिर है मुड़ने का डर नहीं, जरा मुड़ कर भी देखिये मेरे पहुँचने में जरा वक़्त है. इंतज़ार सफ़र को रोकता नहीं शायद, मुश्किल है, पर इंतज...