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मार्च, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यूँ कुछ पहचान बनती हैं !

मुग्धा जिसे रंग अकेले अच्छे नहीं लगते घर दीवारों से नहीं, कहानियों से बनता है  जरा देखिये आप को कौन सा रंग जमता है  हर जज़बात कहाँ शब्दों में बयां होते हैं, कुछ अरमान रंगों में जवां होते हैं, हर सच्चाई नज़रों से नज़र नहीं आती, वक्त के दीवारों पर निशाँ होते हैं   इमरोज़, जो ख्वाब देखती नहीं बनाती है  अनजाने मोड़ों पर सफर करते हैं, अपने ख्वाबों को घर करते हैं, एहसास तारुफ बने रहें, क्या हुआ जो दुनिया को गज़ब करते है जावेद भाई जो रिलीफ वर्क के लिए हेयती मै हैं कितनी जमीनो पर आपकी सुबह होती है चलते क़दमों से दिल में जगह होती है आपके सफर आपको मुबारक हों एक जिंदगी कायनात को नज़र होती है ! नजर उठ कर कहाँ तक पहुंचेगी, उम्मीद अब कौन से अरमानो को सीचेंगी, अपने एहसासों से जुड़े रहिये, पुकार आपको कशिश बन कर खींचेगी.. और सौम्या जो दोस्तों की गिनती करती है उम्र की नहीं ... चलो जिन्दगी कि गणित बदल दें, उम्र प्यार कि हो, (जितनी बढे उतना अच्छा), दिन कि जगह दूरियों का सोचें, (जल्दी गुजर गया तो अच्छा) महीने मुलाकातों से बदलें, और साल लोगों ...

खुदगर्ज़ मन की दुआ!

गर्मी में बारिश की झलक,  नेक इरादॊं के फलक खुदगर्ज़ मन की दुआ,  कुछ देर तलक,  कुछ देर तलक और चंद  लम्हों तलक, झपक न जाये पलक बिरली सच्चाई है देर उतरेगी हलक  खुदगर्ज़ मन की दुआ,  कुछ देर तलक, कुछ देर तलक   सुन के बादल कि गरज, जाग उठती है ललक  कौन जाने असर दुआ का है,  या मर्ज़ी ए मलक खुदगर्ज़ मन की दुआ,  कुछ देर तलक, कुछ देर तलक  हम अकेले नहीं, कहती है पंछी की चहक सर हलाती हैं जमीं,  भेज मट्टी कि महक खुदगर्ज़ मन की दुआ,  कुछ देर तलक, कुछ देर तलक  कान में बारिश की टिपक, पत्तों पे बुंदों की चमक, हर सांस इशारे से, कहती है ज़रा और बहक खुदगर्ज़ मन की दुआ,  कुछ देर तलक, कुछ देर तलक 

आज महिला दिन है

आज महिला दिन है और मालिक(पूंजीवादी) गिनतियाँ गिना रहे हैं, कहीं कहीं तो मुफ्त मे उनको दारू भी पिला रहे हैं, आप आ पहुंचे हो, दूनिया तैयार है, थोड़े पैसे खर्च कीजिये आज आपका त्यौहार है,   आज आप आसमान पर हैं, चाँद पर आपके पाँव हैं, (कवियों के हिसाब से आप अपने चहरे पर चल रहे हैं) इटली में आपके गांव हैं, विश्व और ब्रम्हाडं सुंदरियां साल दर साल बढती जा रही हैं, बहुत से देशों मे तो उनकी हर साल फसल आ रही हैं और आज तो संसद में भी, महिला बिल पास होने वाला है(मार्च २०१०) (आखिर देश की वाट लगाने की जिम्मेदारी सिर्फ मर्द क्यों लें) और आज ही पहली महिला निर्देशक ने एक ऑस्कर जीता है  और मुझे यकीं हैं किसी छोटी बच्ची, ने कहीं एक झोपडी में आज a,b,c,d सीखा है महारानी अब भी एलिजाबेथ हैं, पर ‘fair and lovely’ फिर भी सफ़ेद है शुक्र है मैंने गणित किया है कभी जिया नहीं, मैं उलटी गिनता हूँ और शुरू शुन्य से आज औरत दिन है? मैं देखता हूँ तो अनगिनत जगह अब भी सिर्फ (dust) बिन है पिछले १५ दिनों में मैंने एक १४ साल की माँ देखी है, और सुनते है कल किसी ने नौ साल की, लड़की ...

गुठली के दाम!

राम का नाम, मासूमों की जान, सियासत तमाम, शरीफ़ों की ख़ामोशी,  समझदारों की तकरीर, ज़ाहिल तालीम, और तजुर्बों की ज़हालत, बेड़ा-गर्क है मियाँ और इरादों की वकालत? धोका खाने का उतना गम नहीं जो इस एहसास का, कि हम आदमी आम निकले! भगवान के नाम पर दे दो अपने वोट! सियासत में भिखारी तमाम निकले!! जितने थे सरपरस्त सब हराम निकले!  कोई नहीं जिसके मुंह 'हे राम' निकले !! सियासी दंगलो के अब नए सामान निकले!  कहीं राम निकले तो कहीं कुरान निकले!!  भक्तों ने तेरे तुझे ही गलत साबित किया!  छुरा भोंक कर देखा, कहाँ पर राम निकले!! जिसने खुदा का नाम बदला उसको मारा! हे भगवन, तेरे भक्त बड़े  शैतान निकले!!  जरुरत पड़ गयी तो दोस्ती का वास्ता! फिर मिलेंगे जब कोई काम निकले !! साथ है, तो हाथ तुमको, क्यों कर जरुरी है! कोई सौदा है आम, कि गुठली के दाम निकले? कोई नयी बात नहीं, तरह तरह के राम निकले! हर युग में सीता की बस यूँ ही जान निकले!! (मंदिर मस्जिद के प्रेमी व्यापारिओं से परेशां हो कर  बाबरी कांड और उसके बाद...

सफ़र-ए-ताल्लुक!

किस मोड़ पर हमसफ़र होंगे,  मैं पहुँचती/ता हूँ,  उम्मीद है आप खड़े होंगे? कितना मुश्किल है बनते हुए रिश्तों की लकीरों पर चलना एहसास को क्यों शरीर चाहिए, क्यों लम्हों के अमीर चाहिए नज़दीक आने कि तमाम मुश्किलें हैं, मोहब्बत को फकीर होना चाहिए समस्या बहने कि नहीं बहते हुए रहने कि, चलो हम बह भी गए तो साहिल क्या होगा गुजरते वक़्त को कायल क्या होगा और रुक गये तो हासिल क्या होगा "इश्क" है जाहिल तेरा क्या होगा दूरियों के सब फर्क मिटा दें तो क्या हाथ आएगा  हांसिल होगा कुछ या होंसला बढ़ जायेगा नजदीक आयेंगे या फ़ासला आ जायेगा एक होँगे या आसरा बढ़ जायेगा पहचान आप से और अपने आप से मेरे हिस्से कि जमीं, और आप कि नजदीकियां मुझे अपने फासले पसंद हैं. नज़दीक होँ  तो आपको नज़र आयें, एक रास्ते भी हैं और सफ़र भी अलग नहीं पर मोड़ आने से पहले कैसे मुड़ जाऊं. जाहिर है मुड़ने का डर नहीं, जरा मुड़ कर भी देखिये मेरे पहुँचने में जरा वक़्त है. इंतज़ार सफ़र को रोकता नहीं शायद, मुश्किल है, पर इंतज...

आज़ाद रंग!

रंग सबके हिस्सों के, परदे आँखों पर किस्सों के, आप पूरी तस्वीर हैं, मूरख देखे हिस्सों से! इरादों के रंग जब जन्म लेते हैं, जिद्दी सच्चाइयों को बदल देते हैं, अब हाथों को पीछे मत खींचना, चलो फिर एक आज को कल देते हैं! हाथ बढ़े हैं आज कदम कब साथ देंगे, हरकत यकीं को दीजे, मुश्किल को आग देंगे रंगों में जान देखी, न कहे कि जबान देखी आप ही अपनी सच्चाई हैं, और कोशिशें (सारी) हराम देखी  और कलाकार(मुग्धा) ने कहा रंगों से रंगीले नगर जा पहुँचे एक नयी दिशा आ पहुँचे देखें अब खेल नया कोई  अगली दीवार कि सज़ा कोई सजने कि सज़ा है कबूल कर लीजे उपनी हरकतों को उसूल कर लीजे जिन रास्तों के मोड़ नहीं होते उन रास्तों को फ़िज़ूल कर लीजे कम्युनिकेशन मीडिया फॉर चिल्ड्रेन के पोस्ट ग्रैज़ुऐशन(एस अन डी टी विश्वविद्यालय पुणे) स्टुडेंट्स और मुग्धा कि अभिव्यक्तिओ...