मुग्धा जिसे रंग अकेले अच्छे नहीं लगते घर दीवारों से नहीं, कहानियों से बनता है जरा देखिये आप को कौन सा रंग जमता है हर जज़बात कहाँ शब्दों में बयां होते हैं, कुछ अरमान रंगों में जवां होते हैं, हर सच्चाई नज़रों से नज़र नहीं आती, वक्त के दीवारों पर निशाँ होते हैं इमरोज़, जो ख्वाब देखती नहीं बनाती है अनजाने मोड़ों पर सफर करते हैं, अपने ख्वाबों को घर करते हैं, एहसास तारुफ बने रहें, क्या हुआ जो दुनिया को गज़ब करते है जावेद भाई जो रिलीफ वर्क के लिए हेयती मै हैं कितनी जमीनो पर आपकी सुबह होती है चलते क़दमों से दिल में जगह होती है आपके सफर आपको मुबारक हों एक जिंदगी कायनात को नज़र होती है ! नजर उठ कर कहाँ तक पहुंचेगी, उम्मीद अब कौन से अरमानो को सीचेंगी, अपने एहसासों से जुड़े रहिये, पुकार आपको कशिश बन कर खींचेगी.. और सौम्या जो दोस्तों की गिनती करती है उम्र की नहीं ... चलो जिन्दगी कि गणित बदल दें, उम्र प्यार कि हो, (जितनी बढे उतना अच्छा), दिन कि जगह दूरियों का सोचें, (जल्दी गुजर गया तो अच्छा) महीने मुलाकातों से बदलें, और साल लोगों ...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।