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गुठली के दाम!

राम का नाम, मासूमों की जान,
सियासत तमाम,
शरीफ़ों की ख़ामोशी, समझदारों की तकरीर,


ज़ाहिल तालीम, और तजुर्बों की ज़हालत,
बेड़ा-गर्क है मियाँ और इरादों की वकालत?


धोका खाने का उतना गम नहीं
जो इस एहसास का,
कि हम आदमी आम निकले!

भगवान के नाम पर दे दो अपने वोट!
सियासत में भिखारी तमाम निकले!!

जितने थे सरपरस्त सब हराम निकले! 
कोई नहीं जिसके मुंह 'हे राम' निकले !!

सियासी दंगलो के अब नए सामान निकले! 
कहीं राम निकले तो कहीं कुरान निकले!! 

भक्तों ने तेरे तुझे ही गलत साबित किया! 
छुरा भोंक कर देखा, कहाँ पर राम निकले!!


जिसने खुदा का नाम बदला उसको मारा!
हे भगवन, तेरे भक्त बड़े  शैतान निकले!! 


जरुरत पड़ गयी तो दोस्ती का वास्ता!
फिर मिलेंगे जब कोई काम निकले !!

साथ है, तो हाथ तुमको, क्यों कर जरुरी है!
कोई सौदा है आम, कि गुठली के दाम निकले?

कोई नयी बात नहीं, तरह तरह के राम निकले!
हर युग में सीता की बस यूँ ही जान निकले!!


(मंदिर मस्जिद के प्रेमी व्यापारिओं से परेशां हो कर बाबरी कांड और उसके बाद कि नफरतों से परेशां हो कर लिखी )


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