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आज़ादी किस से!!



जिसकी ताकत उसके अच्छे दिन,
झूठ मर्ज़ी के सच बनाने के दिन,


जुर्रत! क्यों आज़ादी की बात करते हो?
इन सवालों से आप आज़ादी बर्बाद करते हो!!

समझिए, बूझिए, पूछिए, जूझिए!
सवाल ही सिर्फ़ सच पहचानते हैं!!

आज़ादी का ऐसा नशा,
जंज़ीरें नहीं दिखतीं!
तस्वीरों से खुश हैं सब,
फूटी तकदीरें नहीं दिखतीं!

तमाम फ़कीरी मज़हबी लकीरों में सिमटी है,
उसूलों की किसी को गऱीबी नहीं दिखती?

जो हमराय नहीं होता वो रक़ीब है,
कब से सोच के हम इतने तंग हो गए?
ये कैसी आज़ादी आयी,
सब के सब रज़ामंद हो गए?

मुगालते में सब के हम आजाद हैं,
यकीं उनका जिनके सर पर ताज है!


किसकी मज़ाल जो कहे आज़ादी नहीं है?
मन में आये वो बोलोगे देशद्रोही कहीं के?

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