पहरा तो गहरा है,
हर कोने पर शक खड़ा है,
हर गली में बदनियती पहरा देती है,
कितना भी नेकनियत निकलिए,
खौफ़ गश्त लगा रहा है,
बदसलूकी रोज़ का मौसम बनी है,
हाथ उठते है,
और गरेबाँ हो जाते हैं,
वो कहाँ मर्द औरत में फ़र्क लाते है?
आखिर अखंड भारत के नुमाइंदे है,
शायद ये संविधान के कायदे हैं,
बराबरी!
हर कोने पर शक खड़ा है,
हर गली में बदनियती पहरा देती है,
कितना भी नेकनियत निकलिए,
खौफ़ गश्त लगा रहा है,
बदसलूकी रोज़ का मौसम बनी है,
हाथ उठते है,
और गरेबाँ हो जाते हैं,
वो कहाँ मर्द औरत में फ़र्क लाते है?
आखिर अखंड भारत के नुमाइंदे है,
शायद ये संविधान के कायदे हैं,
बराबरी!
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