मीलों थके पाँव अवाम चला है, बेशर्म भारत का नया नाम चला है! छोड़ दिया अपने हाल पर मरने, घर बैठ सुनते हैं सब काम चला है! शर्मसारः कितने आ गए मदद करने, बस किसी तरह से ये काम चला है! मर गए सड़कों पर कितने लोग, समझे? यूँ बीमारी से बचने का काम चला है! बदतरी का सलूक, दर दर भटकते से बस एक माफ़ी से उनका काम चला है! हुकम चला, लाठी ओ फरमान चला है इज़्ज़त से कहां कोई काम चला है? बिठा दिया बीच सड़क छिड़कने को दवा, और पाँच सितारा किसी का इंतज़ाम चला है? राम के कारनामे और किशन के प्रपंच, एकलव्य का अब भी काम तमाम चला है! कर दिया एलान घर बैठने का अचानक बेघर तभी से तले आसमान चला है! घर बैठे ताली मारते बड़े बेशर्म हैं आप, क़यामत इस मुल्क का अंजाम चला है!!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।