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तालाबंद -रुकावट के लिए खेद ?


इंसान होने का नया दौर चला है,
भीड़ है क्या और क्या शोर चला है?

लाठी के साथ गाली है,
ताली के साथ थाली है
इतने शोर में कहां सवाली चला है?


बंद हो गयीं सरकारी दफ़तर में सारी मुश्किलें, 
सरकारी ज़मीर की सुना, नीलामी चला है!




उड़ कर आ गयी बीमारी कोरोना, 
अमीरों का नया इंतज़ाम चला है!

मजदूर रहने के लायक नहीं रहा,
मजबूर, काम से निकाले चला है?

रईसों की दुनिया है अब ये
इसलिए लिए हाथ खाली चला है!





उनको बीमारी का डर है
चार दीवारों में उनका घर है,
बैठ गए हैं हाथ पर हाथ धरकर,
टीवी पर सुनते हैं रामायण चला है!

डाक्टरों के पास पूरे कपड़े नहीं हैं, 
इक्कीसंवी सदी मेरा हिंदुस्तान चला है?


कितने ऐश थे उन लोगों के,
रोज कमा कर खाते थे,
पेट काट कर अपना
पैसे घर भिजाते थे,
अच्छे दिन का मुखौटा था वो,
समझे हैं अब, साथ बदहाली चला है!






रास्ता लंबा था, उम्र छोटी थी,
चर्बी कितनी और कितनी बोटी थी?
पाँव लंबे नहीं थे पर चादर छोटी थी,
मां बाप ही उसके सर की छत थी,
वो चल रहे थे तो ये भी चला था,
देर और दूर में खाली पेट चला था!
आखिर में चार कंधे सवारी चला था!





काम बंद, दुकान बंद,
घर अंदर मकान बंद,
पैसा बंद, जेब तंग,
ऐसा ये रईसों का इलाज चला है,
वाह रे मुल्क, सरकार, मालिक,
बदमिज़ाज़, बदनीयत, बदतमीज़
बद से बदतर होता हाल चला है!
तंगदिली का नया रिवाज़ चला है?

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