खुद से मोहब्बत का रिश्ता बरकरार है,
कभी इकरार है कभी इंकार है,
बात नहीं होती अक्सर, दिल भर,
दुनिया, ये बड़ी दीवार है!
खुद से मोहब्बत का रिश्ता बेकरार है,
जाहिर है क्या ओ क्या पुर इसरार है!
बता देता है सब कुछ, अक्सर,
कभी मुंह खोलने से इंकार है!
खुद से मोहब्बत का रिश्ता बेकार है,
खुद है गलती, खुद ही इंकार है,
सर चढ़ बोलता है, शाबाश!
पलक झपकते निकम्मा होने तैयार है!
खुद से मोहब्बत का रिश्ता इसरार है,
रूठने - मनाना ये ही प्रकार है,
आईना है सामने हरदम,
पर कौन इसे देखने तैयार है?
क्या खेल है खुद से मोहब्बत का रिश्ता?
क्यों इसमें कोई जीत हार है?
होड़ है आगे रहने की, ज़हन में,
दिल को ये दौड़ नागवार है!
ख़ुद से मोहब्बत का रिश्ता दीवार है,
हर मोड़ कम करने को,
दुनिया सर चढ़ बैठी है,
ओ ये रिश्ता काबिल सिपहसलार है!
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