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नया भारत!

चलो मस्ज़िद गिराते हैं, चलो मंदिर बनाते हैं, यूँ ईंट से ईंट बजा कर नया देश बनाते हैं! अल्लाह की शामत आई अब राम विराजी है, भारत का वक्त गया, हिंदुस्तान की बारी है! दाढ़ी टोपी को रौंद दिया, साथ कोइका सर गया, तिलक त्रिशूल का मौसम है दिल ख़ुशी तर गया! बहुत हुआ ये शोर, दिन की पांच अज़ानों का, अब चौबीसों घँटे बस राम नाम ही जारी है! हरियाली के दिन लद गए, भगवा इसपर भारी है, दूर नहीं वो दिन, जल्दी अब, तिरंगे की बारी है! संविधान के सत्तर दोष, सेक्युलरी में सब मदहोश, मनुस्मृति की तगड़ी सोच ताल ठोंक अब भारी है! बहुत हुई बराबरी, क्यों इसकी ललकारी है? शांति लाने के लिए अब ऊंच-नीच तैयारी है! झूठ हमारे सच होंगे, सब धर्मकर्म के वश होंगे, नया ज्ञान, नया इतिहास, ये अपनी होशियारी है!

हम आप आज कल!

वो ज़हर जो हमको क़ातिल करता है, रामबाण है, अचूक असर करता है! कौन है जो दिल ये नफ़रत भरता है? आप ही आइए जहां हम मिलते हैं ! अलग चाल है सबकी और चलते हैं!! रिश्ते क्यों हम को अलग करते हैं? जो भी ख़बर मिली वो ही सच है? बुरी है बात और किसी के सर है! डर और नफ़रत आपके घर है! किन रंगों से आईने रंगवाए हैं? क्यों नफ़रत नज़र नहीं आए है? सड़क पर मार दिया ये न्याय है? रामराज्य, राम नाम, आसाराम, बाबाराम, घोर कलयुग है और ये सब राम के काम? सोच, तर्क, विज्ञान का तो काम तमाम! धर्म का धंधा, खरीददारी चंदा, राम नाम में बढ़े फायदे में बंदा, घटिया नीयत और काम गंदा!

पैरों तले ज़मीन!

ताक़त नशा है,  नशा लत होता है,  लत मजबूरी बनती है,  सच से,  ईमान से दूरी बनती है,  अपनी सोच,  जरूरत बनती है,  बस फिर क्या,  साम दाम दंड भेद,  फिर क्या खेद? सब शरीफ़ हैं,  कहीं न कहीं,  दायरे बस अलग अलग,  कोई दुनिया का है,  कोई देश का,  कोई धर्म का, जात का,  कोई मर्द बात का  कोई जमीन का,  कोई कुदरत-ब्रम्हांड का!  आप कितनों के शरीफ हैं? सब की लड़ाई है,  किस से?  किस वजह से?  अपने लिए, अपनों के लिए  खोए सपनों के लिए?  अपनी हदों से लड़ाई है  या  सरहद गंवाई है?  यकीन से जंग है?  या बंद आँख देशभक्त है?  उनका सोचें,  जो भूख से लड़ते हैं?

रास्ते मजदूर

(पैदल मजदूर) किसी का दर्द हमको कभी परेशां ने करे, या खुदा हालात मुझे ऐसा इंसान न करे! लाखों को सडक़ पर लाकर छोड़ दिया, एक के साथ भी ऐसा बुरा अंजाम न करे! सामने आने तक ज़ख़्म ज़ाहिर न हों, सोच मेरी तू आँखों का माजरा न करे! शहर में था तो मेरे बहुत काम आया, (वो)तहज़ीब कहाँ जो उसको पराया न करे! (मेरी प्रिवलेज) मेरे आराम का उसके पसीने से वास्ता कोई? मदद हो मेरी पर मुझको मेहरबाँ न करे! आबाद होने को वापस यहीं बुलाएंगे, अभी ये इल्ज़ाम की शहर को कब्रिस्तान न करे! (कोरोना! बाप रे! तबलीकी, जमात, जिहाद जिहाद) मुश्किल में थे तो हमारे मुसलमां जा बने, नफ़रत को कोई सोच यूँ आसां न करे! अपने ही दर्द को कुर्बान हो गए रास्ते में इस ख़बर को कोई अब पाकिस्तान न करे! (पीएम केयर, कब और कहाँ?) मदद करने को ख़ज़ाने खड़े हो गए, इन दिनों वो क्यों इस तरफ रास्ता न करे? खुदा बनने को मेरे तैयार हैं कितने देखो, शिकायत पुरानी क्यों मुझे मसीहा न करे?

कोरोना बीमार!

बीमार करके फ़िर दवा देते हैं, आपको तारीफ़ की वज़ह देते हैं! दवा दे कर बीमार करते हैं, किराया बस को हज़ार करते हैं!! बस इरादा नहीं काफ़ी, नेकनीयती का, पहले ये कहिए क्यूँ हमें लाचार करते हैं?? क्यों कोई शराफ़त देखे उनकी, जो? सवाल पूछने पर गुनाहगार करते हैं? छोड़ दिया सड़क पर लाकर सबको, सरकार हाथ जोड़ मज़ाक करते हैं? भूख, प्यास मजबूरी से मर गए कई, कहते हैं, हम मन की बात करते हैं!! गलती नहीं मानते, पर माफ़ी मांग गए, तमाशे वो ऐसे सौ -हजार करते हैं! मिला बहाना तो इल्ज़ाम ज़िहाद का, नफ़रत से सरकार बड़ा प्यार करते हैं? बीमारी को मज़हब, जंग ओ जिहाद? दिलों में दीवार हो वो हालात करते हैं! कातिल हैं वो दवा की बात करते हैं, जानलेवा है वो जो इलाज़ करते हैं!

सुमित सुमीत!

कथनी से करनी बड़ी, कहे दास कबीर, यूँ प्यार से नफ़रत जीते वो ही सच्चे वीर! वो ही सच्चे वीर कि जो दर्द हो जाएं, आँसू जिनके चोट का मलहम बन जाएं! बने चोट का मलहम चलो ये रीत चलाएं, नफ़रत के मारों के चलो सुमीत बन जाएं! बनें सुमीत सब ऐसे कोई न पड़े अकेला, इस दुनिया को करे बहनचारे का खेला! बहनचारे का खेला नहीं सिर्फ़ ये भाईचारा, शामिल हों इसमें सब, नहीं खासा-प्यारा!  हर कोई खासा-प्यारा यही तो है मानवता, यकीन मानो है हम सब में ये क्षमता! क्षमता कितनी हम सब में ये न पूछो, बुद्ध हुए अपने ही बीच, कबीर सोचो!! (एक इंसान से मुलाकात हुई, बात हुई, इंसानियत पर हुए ज़ख्मों का दर्द उनकी आंखों में नज़र आया, वो भी एक डर होता है जो हाथ आगे बढ़ाता है गले लगाने के लिए, ये बात समझ मे आई)

#ThinkBeforeYouVote !!

सुबह सो रही है, जाग रही है या भाग रही है? रुकी है कहीं या अटक गई है, या अपने रास्ते भटक गई है? रोशनी की शुरुवात है या अंधेरों से निज़ात, या डिपेंड करता है क्या मजहब, क्या जात? सुबह बन रही है, या हमको बना रही है? शिकायत कोई? किसको सुना रही है? इंतज़ार करें? हाथ पर हाथ धरें? माथे जज़्बात करें? किससे क्या बात करें? सब राय हैं? हक़ीकत? नीयत? यक़ीन! यक़ीनन? डरे हुए हैं! शक़ से भरे हुए हैं! झूठ तमाम से तरे हुए हैं! फ़िर भी, चाहे कुछ, सुनिए, कहिए, गहिए, दिल में रहिए या ज़हन में! रोशनी, रोशनी है, अंधेरा अंधेरा! रोशनी भी भटकाती है! अंधेरा रास्ता भी दिखाता है! उनकी कोई धर्म-जात नहीं, उनको फ़ायदे-नुकसान की बात नहीं! आप तय करिये आप देख रहे हैं? या अपनी नज़र के ग़ुमराह? #ThinkBeforeYouVote 

जन्नत कहाँ?

सुना है सब आतंकी हैं, इस जगह! हर एक शख़्श! बच्चा, बूढ़ा, आदमी औरत, और एल जी बी टी क्यू!? क्यूँ?? यहाँ की हवा में शायद, कोई बात हो! क्यों? कश्मीर! वही जगह दुनिया की, "अगर जन्नत है तो यहीं, यहीं, यहीं है" कश्मीरी भी वही हैं? वादियां भी वही, वही बर्फ, वही चिनार, वही डल, वही हज़रतबल! फिर बदला क्या है? हवा में, क्यों बारूद घुल गया है? सबकी नसों में कड़वाहट घोलने वाला! ये ज़हर कब मिल गया है? ये ज़हर आया कहाँ से? कौन है जो बदलाव नहीं बदला बोलता है?

आज की ताजा ख़बर!

नफ़रत के नए कारोबार निकले हैं, चेतिये के हैवानी सरोकार निकले हैं, सरकार को इंसानियत कमज़ोर चाहिए, बड़े संगीन ये पैरोकार निकले हैं! सच जानिए फिर मानने की बात करेंगें, क्या हम को आज के हालात करेंगे? मुँह बोली खबरें ज़ज्बातों को धरेंगे, बहाना चाहिए, किसी से नफरत करेंगे!!😢 बाबुल बबूल बन गया, फूल कैसे शूल बन गया? नफ़रत के कारोबारी को, मासूमों का खून कबूल हो गया!! सब लीक हो रहा है, हाथ कुछ नहीं आता, और कहते हैं सब ठीक हो रहा है? इंसानियत तार-तार है, और रामनाम पैबंद हो गया है, हिंदुत्व जैसे बदबूदार गंद हो गया है! बेटा राम को गंवारा नहीं हुआ, ईमाम नफरत का मारा नहीं हुआ, जल रही है आग तमाम सीनों में, मोहब्बत से किस का गुजारा न हुआ? अम्बेडकर में राम आ गया, सीता को राम खा गया, बगल की छुरी को राम भा गया, नवमी को तेरवी का पैगाम आ गया अमन रखने इमाम कह गया, बाज़ार धर्म का सामान आ गया, नफ़रत चारों धाम आ गया! पेट्रोल डीजल को आसमान मिला है, 15 लाख न मिलने का इनाम मिला है, कहते हैं भारत को दुनिया में शान मिला है, पूछिए किसान से, शमशान मिला है!! बेटियों के गरेबां क़ानून...

गुस्सा सवालिए!

मैं उदास हुँ हताश नहीं, गुस्सा पाल नहीं रहा, सवाल रहा हूँ, मैं हाल हूँ या हालात? खबरों में खुद से होतीं नहीं मुलाकात, नफ़रत का हर तरफ़ बवाल, कोई मज़हब जल रहा है, और कोई धर्म जला रहा है! जो ज्यादा है वो भीड़ हैं, जो कम हैं वो कम पड़ रहे हैं! इंसान अब इंसानियत से लड़ रहे हैं! और वातानुकूलित सच वालों को यकीन है, के इस दौर में हम आगे बढ़ रहे हैं!