भूख कहाँ बीमारी है,
मजबूरी कैसा रोग है?
जोग है पाखंड का और
ताकत मनोरोग है!
भूख आग भी है और पानी भी
हवा होने वाली चीज़ नहीं,
भड़केगी या बह जाएगी
एक और ज़माना कर जाएगी!
सवाल मत उठाइए, बस मान जाइए,
भीड़ में आइए या भाड़ में जाइए!
आम आदमी हैं औकात में आइए,
कहा है तो कुछ सोच कर ही न,
काहे दिमाग की बत्ती जलाइए?
सच आलसी हैं आपके
या होशियार, ख़बरदार है?
या आप बस हाँ में हाँ मिलाते
सवालों के गुनहगार हैं?।
सच आलसी हैं आपके
या होशियार, ख़बरदार है?
या आप बस हाँ में हाँ मिलाते
सवालों के गुनहगार हैं?।
एकता की खोखली बात है,
अनेकता की लगी वाट है!
घर बैठे दिए जलाते हैं क्या ठाठ है,
भूखे मजबूर को लाठी लात है!
हमारे लिए तो एक वो ही हैं, महान
हम जान रहे है आप जान स जाइए!
'चुप रहिए, सर झुका रहिए', सरकार कहे!
जिसके भी सवाल हैं बस वो खबरदार रहे!!
अंधेरे को देर नहीं और देर को अंधेर है
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें