उम्मीद को आसमान नहीं लगता, मुसाफिर को सामान नहीं हालत को क्या इल्ज़ाम दें, गर जज़्बे को जान नहीं अभी लौटे हैं और चलने की सोचते हैं मेरे सफर ही मेरा रास्ता रोकते हैं अब रुके हैं तो हम मुसाफिर कुछ कम नहीं होते साहिल को छु कर आते धारे नम नहीं होते हर चलना सफर हो तो क्या? रास्ता न रुके तो कहाँ ? मुसाफिर कोई रास्ता नहीं बना, चलते चलते तुम्हारे कदमों ने इसे बुना, मंजिलों को क्या तलाशते हो, वहीँ पहुंचोगे जो तुम्हारे क़दमों ने चुना गुजरना कोई अंत नहीं, सफर कोई अनंत नहीं, काफिले हर मोड़ मिलेंगे, अपने आँसू काबुल हों सब उड़ते हुए पंछी आज़ाद नहीं होते आसमान को इरादे लगते हैं युहीं कोई सफर मुकम्मल नहीं होता सफर में मुश्किलों के अँधेरे लगते हैं
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।