आज फिर कोई मर गया!
क्या हुआ?
किराये का था घर,
गया!
सादा सा था सच क्यॊं सर गया
हकीकत आपकी या कोई गैर है?
पसंद आई तो अपनी नहीं तो बैर है?
सच बुनियाद है!
आपकी ही इबादत
आपकी फ़रियाद है,
ये कौन सा हिसाब है
भरोसा, यकीं, आमीन
कब से सौदा बन गया?
आप के गम से सवाल नहीं हैं,
पर आँसू समंदर की बूँद हैं,
उनका दरिया क्यॊं?
सफर जिनका था मुकम्मल हुआ,
आज आपका है, कल, कल हुआ!
(मौत की कुछ खबरें और उनसे होती व्यथा को देखकर)
क्या हुआ?
किराये का था घर,
गया!
सादा सा था सच क्यॊं सर गया
हकीकत आपकी या कोई गैर है?
पसंद आई तो अपनी नहीं तो बैर है?
सच बुनियाद है!
आपकी ही इबादत
आपकी फ़रियाद है,
ये कौन सा हिसाब है
भरोसा, यकीं, आमीन
कब से सौदा बन गया?
आप के गम से सवाल नहीं हैं,
पर आँसू समंदर की बूँद हैं,
उनका दरिया क्यॊं?
सफर जिनका था मुकम्मल हुआ,
आज आपका है, कल, कल हुआ!
(मौत की कुछ खबरें और उनसे होती व्यथा को देखकर)
बहुत गहरे भाव। मार्मिक अभिव्यक्ति। अशुभकामनायें।
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