हिम्मत के हथियार कहाँ, कश्ती की पतवार कहाँ,
खाली हाथों के बोझ को, कंधे ये तैयार कहाँ?
दिखती है सबको हिम्मत,पर अब अपनी ललकार कहाँ,
काँटों के मौसम में यारब, गुलशन में गुलज़ार कहाँ ?
कारोबार नहीं बदले हैं, पर अब वो बाज़ार कहाँ
मुहँ मांगे जो दाम लगा दे, अब वो ऐतबार कहाँ?
हरदम बिखरे ही बैठे हैं, कब हम हैं तैयार कहा
वही मिजाज़, वही तेवर हैं, समझे ऐसे यार कहाँ?
पहले थी कमज़ोर हकीकत, अब कहते शैतान यहाँ,
मुलजिम ठहरे तेरे यारब, अब गुस्ताखी माँफ कहाँ?
साहिल अब भी वही है, लहरों का संसार वही
साथ नहीं छुटा है अब भी, हो गए तुम मंझदार कहाँ?
सफर लंबा था थोडा, अपना साथ कहाँ छोड़ा
जाहिर हो गए सब रास्तों को, अब हम हैं अज्ञात कहाँ?
(सफर का एकांत और उससे झूझती सोच के द्वन्द से पैदा)
खाली हाथों के बोझ को, कंधे ये तैयार कहाँ?
दिखती है सबको हिम्मत,पर अब अपनी ललकार कहाँ,
काँटों के मौसम में यारब, गुलशन में गुलज़ार कहाँ ?
कारोबार नहीं बदले हैं, पर अब वो बाज़ार कहाँ
मुहँ मांगे जो दाम लगा दे, अब वो ऐतबार कहाँ?
हरदम बिखरे ही बैठे हैं, कब हम हैं तैयार कहा
वही मिजाज़, वही तेवर हैं, समझे ऐसे यार कहाँ?
पहले थी कमज़ोर हकीकत, अब कहते शैतान यहाँ,
मुलजिम ठहरे तेरे यारब, अब गुस्ताखी माँफ कहाँ?
साहिल अब भी वही है, लहरों का संसार वही
साथ नहीं छुटा है अब भी, हो गए तुम मंझदार कहाँ?
सफर लंबा था थोडा, अपना साथ कहाँ छोड़ा
जाहिर हो गए सब रास्तों को, अब हम हैं अज्ञात कहाँ?
(सफर का एकांत और उससे झूझती सोच के द्वन्द से पैदा)
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