मर्ज़ जाहिर है नज़र अंदाज़ बीमारों पर
बदलती करवटें, बैचैन सलवटें, रात अपने आगाज़ पर है
खामोश होते और चंद लम्हे , आज अपने आगोश में है
मदहोश लम्हों तुम हमसे ज़रा दूर ही बैठो
बहकने के दिन कहाँ, जिदंगी जरा होश में है
होश में है जिंदगी, जाने कहां-कहां भटकायेगी,
क्या खबर, ये मुलाकात खुद से, रास आयेगी?
सवालों की कवायत है या कारवां ए इनायत है ?
दम टूटेगी या फ़क्त जहन की हरारत है ?
इरादतन कुछ कह दिया, या ख़ामोशी ए क़यामत है
कलम से इश्क है या लफ़्ज़ों की शहादत है
खोने में मशरुफ़, या होने को मजबूर,
अपनों के पास नहीं, और अपने से दूर
बदलती करवटें, बैचैन सलवटें, रात अपने आगाज़ पर है
खामोश होते और चंद लम्हे , आज अपने आगोश में है
मदहोश लम्हों तुम हमसे ज़रा दूर ही बैठो
बहकने के दिन कहाँ, जिदंगी जरा होश में है
होश में है जिंदगी, जाने कहां-कहां भटकायेगी,
क्या खबर, ये मुलाकात खुद से, रास आयेगी?
सवालों की कवायत है या कारवां ए इनायत है ?
दम टूटेगी या फ़क्त जहन की हरारत है ?
इरादतन कुछ कह दिया, या ख़ामोशी ए क़यामत है
कलम से इश्क है या लफ़्ज़ों की शहादत है
खोने में मशरुफ़, या होने को मजबूर,
अपनों के पास नहीं, और अपने से दूर
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