
खामोश हुं तो उसको शाम कहते हैं
अपनी परेशानियों को मेरा नाम कहते हैं
जिक्र आये तो बस ' ह राम ' कहते हैं
हमसे बरबाद होते हैं औरों से आबाद
इल्म न था यूँ होंगे यार मेरे हालात

किस्मत से यार मेरे रकीब बनते हैं
क्या मुश्किल है जो मेरे करीब बनते हैं
कहने को तो दोनो खासे शरीफ़ बनते हैं
हाथ फ़ैलानें से कहां कोई फ़कीर बनते हैं
नज़दीकियों से उनकी मेंरे नसीब बनते हैं
दुरियों से उनकी हम गरीब बनते हैं

'कहने को' दुनिया है, पर 'कहां गालिब'
तन्हाइयों के मौसम हैं तन्हाइयों के सवाल
मेरा हाल पुछते है , मेरे हालात
दिल मे जो है वो ही बयान करते हैं
हम कहां लम्हों को सामान करते हैं
जो ज़जबात है वही अरमान करते हैं
जिंदगी जो उसी को जान करते हैं
हम फ़रमाते हैं उनको लगता है भरमाते हैं
हासिल ऐसे लम्हे भी जब वो शर्माते हैं
मनमाफ़िक हालात न हो तो गरमाते हैं
मेरा मज़हब है जब मेरे करीब आते हैं
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