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जाने दो . . !

हाथ खडे करने और जाने दो के बीच ,
लकीर है,
या फ़ांसले ,
या बस शब्दों के कुछ चौंचले
नहीं हो सकता
असंभव, नामुमकिन
ये रास्ते कहां जाते हैं ?
कहां जा सकते हैं ?
मेरे बस कि बात नही!
कुछ भी मेरे हाथ नहीं!
हाथ खड़े करुं या जाने दुं ?
अब कुछ नही हो सकता !
मेरी किस्मत ही ऐसी है !

ये तो एक मकाम है ,
मकाम ?


जहां रास्ते खत्म होते हैं, रुक जाते हैं ,
हाथ खड़े होते हैं , और सर झुक जाते हैं
दुनिया अंगुठा दिखती है / दिखाती है
और ऊंगलियां खुद कि ,
खुद को ही इशारा करती हैं
. . . . .
. . . . . . 


जाने दो , मेरे बस की बात नही !
रुकावट के लिये खेद है
मकाम, ये नहीं !?

एक रास्ता खत्म हुआ
और सफ़र ?
मुसाफ़िर है , रास्तों
का मुंतज़िर नही 
पीछे पलटना , हर दम लौटना नहीं ,
मुड़ना भी हो सकता है
नीचे जाते रास्तों का संकेत
उड़ना भी हो सकता है ,
संभावनायें संमदर हैं
जाने दो . . !
आप तैयार हैं ?
या आपकी कमर पर /उमर पर . . . आपके खड़े हाथों का भार है ?

[हार मानने (Giving up)और हालात समझ कर अपने कदम पीछे खींचने(Letting go) के बीच छुपे अंतर समझने की कोशिश, जाने दीजिये!]

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