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जुलाई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

का कहें कबीर!

ऊसूल सुन के गरीब हैं,   वसूल सुन के फ़कीर,  अपने मतलब की बात सुनें तो फ़िर का कहें कबीर? जात-पात को नाप रहे, ऊँच-नीच को लकीर,  सदियों पहले बोले थे, अब फ़िर से सुनो कबीर  अपने अपने मज़हब की, चमका रहे तस्वीर, वापस आने की बात करें, तो कान धरें कबीर,  रस्म-रिवाज़ और रीत की बड़ी करी तहरीर, वही ढाक के तीन पात, कहे मूरख कौन कबीर रटत-रटत किताब को, बुद्धि के सब वीर, सबके कच्चे कान हैं, जाने कौन कबीर लंबी इमारत, लंबे रास्ते ये दुनिया की तस्वीर, एक-दुजे फ़ुर्सत कहाँ, जो समझा करें कबीर बात पते कि हजार-सौ कह गये संत कबीर, बंद दिमाग के दरवाज़े, सो रहे लकीर के फ़कीर!

हम साथ साथ हैं!

सुना है  भगवान का बलात्कार हो गया , कहने को दो मर्द थे , बेरहम , बेदर्द थे , भगवान ? हाँ जी , आप ही तो कहते हैं बच्चे भगवान का रुप हैं ,  किससे कहते अब तो भगवान बचाये ? पर सच समझना है तो , सच्चाई जानना होगी , दो मर्द दुकेले कैसे भगवान का रेप करेंगे ? सुसाईड़ मिशन तो था नहीं , वरना बात एक हफ़्ते दफ़न नहीं होती , सच्चाई ये है कि वो अकेले नहीं थे , वो उस समय अपनी जात , जी हाँ , जात जता रहे थे , " मर्द जात " बदजात ! बलात्कार एक हथियार है , उसको बनाने वाले , चलाने वाले , सब मर्द , बलात्कार कोई अकेले नहीं करता , करते वक्त उनके साथ , होती है एक संस्कॄति , चीरहरण की , इतिहास , जंग का , दंगों का , बेगुनाह छूटे साथियों का , हमारी याद , जो केवल अगली बड़ी खबर तक जिंदा है ,  तो अगर आप दोष दे रहे हैं , एक - दो मर्द को , और मांग रहे हैं , उनको सज़ा - ए - मौत तो आप केवल बचने की कोशिश कर रहे हैं ,  सज़ा आप को भी बनती है , हम सब को ,...

बूझो तो जानें!

रोक - टोक के बच्चन को, पप्पा, कैसे दिये बड़ाये, अपने मन की बात न चीनें, अब आपही कछू बुझाएं!! आपही कछू बुझाएं कि,  सब चुप्पी के मालिक, दुनिया जाये भाड़, तो का कर लेंगे गालिब, का कर लेंगे गालिब कि, बेच कलम सब खायें, खबरों की दुनिया में, सब सौदागर आये, आये सब सौदागर, सबका दाम लगायें, ख्वाब, इरादे, सपने अब पैकेट में आयें,  लाओ पैकेट में, तुम भी,  कोई बात निराली, शर्मा के का कीजे अब बिकती है लाली,  दिखती है लाली वो भी आँख में खून जमाये, मज़हव के रहनुमा रहम अब खुदा बचाये, खुदा बचाये किस किसको पैरवी सबकी तगड़ी, पैरों में पुजारी के, गरीब की पगड़ी,  कैसी पगड़ी गरीब को, शरम न आये, गिरवी रख के पगड़ी क्यों न भूख मिटाये? कौन मिटाये भुख, भूख किसकी मर जाये, ड़ाईटिंग पे है कोई कि फ़िगर ज़ीरो बन जाये,  ज़ीरो फ़िगर बन जाये ये शौक निराले, ऐ.सी. में मेहनत करके मर्द छे पैक बनाले, छह पैक के मर्द, हो गया बेड़ागरक, मरद और इंसान कि अब पहचान फ़रक!  अपनी ही पहचान से कहाँ है बच्चन वाकिफ़, यकीं के यतीम सब पप्पा मन माफ़िक पप्पा मन माफ़िक कहने को, किसका हुकुम बज...

शून्य एहसास!

हर सफ़र को हमसफ़र लाज़िम है बेचारगी कैसी कि कोई काश मिले यूँ सफ़र करते हैं इस दौर के इंसान मुड़ के देखें तो रस्तों की लाश मिले हमसफ़र साथ चलने को और क्या मत सोचो कि मंज़िल कोई पास मिले उम्मीद बेमानी कि कोई खास मिले तस्सली जो साथी कोई रास मिले, पास आने से दुरियाँ नहीं मिटतीं, गनीमत हो जो ये एहसास मिले नज़दीक आईये खत्म नहीं हुए, लम्हों में शायद कोई साँस मिले, कब कोई लम्हा कहीं उदास मिले, यूँ देखिये शून्य में कोई आस मिले!

पूरा अधूरापन!

पुरा होने का शौक किसको है, चलिये थोड़ा कम हो जायें! कामयाबी का जिक्र कहाँ है, आसाँ काँटों की चुभन हो जाये!    मंज़िलों को दिलासा देने को सपनों को जरा भरम हो जाये  होंगे जो नज़र आसमान करते हैं, क्या बुरा गर जमीनी रंग हो जायें! बेरुखी मौसम खराब करती है, बेहतर है थोड़ा नम हो जायें! खामियाँ हैं सबकी ड़र किसका, कि यूँ आसानी से हज़म हो जायें! पूरा होना है अगर आपको, लीजे मेरा अधूरापन हो जाये!

यूँ अक्सर!

युँ भी कई दिन हम होते हैं, जो काटते हैं वही बोते हैं! यूँ भी हम खाली हाथ होते हैं, न उनके न अपने साथ होते हैं अक्सर ऐसे भी हम खोते हैं, कहने को उनके साथ होते हैं! अक्सर ऐसे भी हालात होते हैं, वो हम नहीं होते जो हम होते हैं, लम्हों के नाज़ुक, कहने को लोहा सही, मौका मिले तो हम भी ज़रा रोते हैं! यूँ होने को ये एक इल्ज़ाम है, जो होते हैं हम काफ़ी नहीं होते, गुनाह कबूल हैं सारे अक्सर, यूँ तो क्या करें‌ काबिले माफ़ी नहीं होते!

एक और अज्ञात!

अज्ञात है और मेरा मित्र भी, एक कोशिश है एक चित्र भी सामान्य है और विचित्र भी सीमित है पर सीमा नहीं जीवित हैं पर जीना नहीं सब कुछ ठीक है, और सब कुछ बदलना है रास्ता बना नहीं फिर भी चलना है, सपने हकीकत हैं, जो बोले शब्द वो जीवित हैं, अपनी ‘गति’ के समाचार, और खबर बुरी नहीं है, सच्चाई छुरी नहीं है, क्योंकि होता वही है जो तय है, और चाल आपकी, आपकी शय है, मात नज़र की कमजोरी है, उम्मीद कि न दिखे फिर भी डोरी है वैसे भी आँख के सामने गर अँधेरा है, तो हाथों को हवा कीजे, यकीन की दवा कीजे , और मारिये एक छलांग, जमीन से गिरे भी तो कहीं नहीं अटकते, एक दो तीन,...... धड़ाम देखा, न चींटी मरी, न आप , पर तबीयत हरी हो गयी! चलिए अब नए सिरे से सोचें बोलने वाले तो कुछ भी बोलेंगे!

जाओ भरसाई में ......

उनका शहर देख लिया, दोपहर देख लिया, रोशनी वहां भी है, अँधेरे भी होंगे, गुम होने को कई कोने भी होंगे, अँधेरे यहाँ भी बहुत हैं, पर गुम नहीं हो सकते, सच्चाईयां सर सवार हैं, और भीड़ ज्यादा है, कंधे रगड़ रहे हैं,  कब किस की मुश्किल अपने कंधे आ जाये और वहां खामोशी कितनी है, चाहें तो  अपने ही ख़्वाब सर चढ़ बोलते हैं, और यहाँ बारिश हो तो आँखे गीली करते हैं, मुल्क है कोई और  या जैसे मुरख को आइरनी(IRONY)  समझाने  कसर न रहे ये सोच थी? सड़कों पर जगह बहुत है  लोग कम पड़ जाते हैं, पुराने शहरों को चमका के रखा है,  इतिहास किताबों में होता है सुना था, काम चार दिन होता है  और दिन छोटे?  जाहिर सवाल है, इन लोगों को कोई काम नहीं? और दवाइयां भी मुफ्त, पता नही सब बीमार क्यों नहीं पड़ते...? हमारे यहाँ बांटो,  भले-चंगे लाईन में नज़र आयेंगे, दवाई दावतों में खिलाएंगे, अज़ीब दुनिया है, कहीं समंदर है आराम, और कहीं जीना हराम, चक्रवात तूफ़ान शायद किसी पागल ने बनाई है, अब क्या बोलें जाओ भरसाई में !

आज कुछ करना था!

भूख थी प्यास थी, खटास थी मिठास थी, लगे परोसने जो भी, ख़ास थी न ख़ास थी! कुछ करने को बैठे थे, कुछ कर बैठे हैं, अपने ही इरादों से, क्यों भला ऐंठे हैं!   कुछ कहने की ललक है, कुछ दूर फलक है, शब्दों को पिरोते हैं, शाम तक चाँद खींच लेंगे! यूँ वक्त को हम गुजारते नहीं, न लम्हों को संवारते हैं, मेकअप का शौक नहीं, फिर भी आपके सामने हैं! खलबलाहट है बस इतनी खबर है, दिन बस 2 लम्हे पहले शुरू हुआ, चिंता न करें पेट साफ है ! दिन गुजरा क्या, क्या रात आई? खो गयी न जाने कहाँ तऩ्हाई,   न मर्ज़ कोई न दवाई, क्या खामी है और क्या भरपाई! मसरूफ़ हैं कितने कि खाली-खाली हैं, अपनी ही हरकतों के हम सवाली हैं! कुछ छूट गया क्या, या बाकी है, एक हलचल थी जो काफ़ी है, आज कुछ करना था, गौर करें!