ऊसूल सुन के गरीब हैं, वसूल सुन के फ़कीर, अपने मतलब की बात सुनें तो फ़िर का कहें कबीर? जात-पात को नाप रहे, ऊँच-नीच को लकीर, सदियों पहले बोले थे, अब फ़िर से सुनो कबीर अपने अपने मज़हब की, चमका रहे तस्वीर, वापस आने की बात करें, तो कान धरें कबीर, रस्म-रिवाज़ और रीत की बड़ी करी तहरीर, वही ढाक के तीन पात, कहे मूरख कौन कबीर रटत-रटत किताब को, बुद्धि के सब वीर, सबके कच्चे कान हैं, जाने कौन कबीर लंबी इमारत, लंबे रास्ते ये दुनिया की तस्वीर, एक-दुजे फ़ुर्सत कहाँ, जो समझा करें कबीर बात पते कि हजार-सौ कह गये संत कबीर, बंद दिमाग के दरवाज़े, सो रहे लकीर के फ़कीर!
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।