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हम साथ साथ हैं!


सुना है 

भगवान का बलात्कार हो गया,

कहने को दो मर्द थे,

बेरहम, बेदर्द थे,

भगवान?

हाँ जी,

आप ही तो कहते हैं

बच्चे भगवान का रुप हैं

किससे कहते

अब तो भगवान बचाये?

पर सच समझना है तो,

सच्चाई जानना होगी,

दो मर्द दुकेले कैसे

भगवान का रेप करेंगे?

सुसाईड़ मिशन तो था नहीं,

वरना बात एक हफ़्ते दफ़न नहीं होती,

सच्चाई ये है कि वो अकेले नहीं थे,

वो उस समय अपनी जात,

जी हाँ, जात जता रहे थे,

"मर्द जात"

बदजात!

बलात्कार एक हथियार है,

उसको बनाने वाले,

चलाने वाले, सब मर्द,

बलात्कार कोई अकेले नहीं करता,

करते वक्त उनके साथ,

होती है एक संस्कॄति, चीरहरण की,

इतिहास, जंग का, दंगों का,

बेगुनाह छूटे साथियों का,

हमारी याद,

जो केवल अगली बड़ी खबर तक जिंदा है

तो अगर आप दोष दे रहे हैं,

एक-दो मर्द को, और मांग रहे हैं,

उनको सज़ा--मौत

तो आप केवल बचने की कोशिश कर रहे हैं

सज़ा आप को भी बनती है,

हम सब को,

क्योंकि हम साथ-साथ हैं,

रेप एक आदमी करता है,

पर वो अकेला नहीं है,

उसकी हिम्मत, उसकी सोच

हम सबकी देन है,

फ़िल्मों‌ में लड़की शरीर होती है,

हम देखते हैं

अखबारों में, विज्ञापनों में,

सड़कों पर,

किताबों में, पुराणों में

सब जगह वही एक सबक है,

इस्तेमाल की चीज़ है

जिस कल्चर में,

अपनी बीबी का बलात्कार करना

मर्द का कानूनी अधिकार है,

तो आपका एक बलात्कारी पे गुस्सा,

बेकार है,

वो अकेला नहीं है,

हम साथ साथ हैं,

इतनी भी कोई बड़ी बात नहीं है,

सच कहें तो आपको प्रोब्लम,

रेप से नहीं है,

केंड़िड़ेट गलत चुना,

अगर कोई सही उमर और

गलत जात की होती,

तो फ़िर कोई और बात होती,

ये बात रोज़ नहीं अखबार होती,

सुबह की चाय नहीं खराब होती,

सच कड़वा होता है,

आपको प्रोब्लम रेप से नहीं,

कहां होता है उससे है,

वर्ना ये क्या बात है,

कि दिल्ली, बेंगलोर में हुआ

तो बलात्कार है,

भागना, मुज़फ़्फ़र में‌ हुआ,

तो अंदर के पन्नों पे छपा समाचार है?

छह साल कि बच्ची के साथ हुआ तो

गुस्सा ज्यादा, और

बीस साल के साथ गुस्सा कम,

क्या उमर बढ्ने से,

रेप होने की योग्यता बढ् जाती है?

बड़ा शहर तो बात बड़ी,

छोटे शहर की छोटी,

और गाँव वगैरा में तो

ये आम बात है,

यानी बात वापस वहीं आती है,

आपका गुस्सा, आक्रोश

बलात्कार से नहीं है,

जगह, उमर, जात, हालात, ये सब

देख कर होना चाहिये,

यानी कमज़ोर, मजबूर, मज़दूर,

यानी जिनका हमेशा से होता आया है,

जो आपको पहले नज़र नहीं आया है,

ये शरीफ़, 'अच्छे घरों' वाले,

पढे-लिखे लोगों के साथ नहीं होना चाहिये,

आखिर मर्यादा भी कोई चीज़ होती है,

मूरख बलात्कारी, इतनी भी नहीं‌ जानकारी,

अच्छे दिनों में बुरे काम नहीं करते!





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