लगे परोसने जो भी, ख़ास थी न ख़ास थी!
कुछ करने को बैठे थे,
कुछ कर बैठे हैं,
अपने ही इरादों से,
क्यों भला ऐंठे हैं!
कुछ कहने की ललक है,
कुछ दूर फलक है,
शब्दों को पिरोते हैं,
शाम तक चाँद खींच लेंगे!
यूँ वक्त को हम गुजारते नहीं,
न लम्हों को संवारते हैं,
मेकअप का शौक नहीं,
फिर भी आपके सामने हैं!
दिन बस 2 लम्हे पहले शुरू हुआ,
चिंता न करें पेट साफ है !
दिन गुजरा क्या, क्या रात आई?
खो गयी न जाने कहाँ तऩ्हाई,
न मर्ज़ कोई न दवाई,
क्या खामी है और क्या भरपाई!
मसरूफ़ हैं कितने कि खाली-खाली हैं,
कुछ छूट गया क्या, या बाकी है,
एक हलचल थी जो काफ़ी है,
आज कुछ करना था, गौर करें!
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