सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मैं ना मर्द!

 मैं एक का था और वो २५ की, 
नज़दीकी मैंने तभी सीखी, 
मैं पाँच का था और  वो उन्तीस की, 
तब पता चला कि किसी को जीतने के लिये,
किसी को हारना पड़ता है, 
इंसान बनने की यही शुरुवात थी

मैं पन्द्रह का था और वो अठाहरा की, 
वो आगे रहती थी, 
अपने यकीनों पर जीती थी
मर्द नहीं बनने की मेरी यही शुरुवात थी
मैं इक्कीस का था वो चौबीस की थी, 
आंटा माड़ना, रोटी गोलना और 
ज़िंदगी के पापड़ बेलना 
तब मैनें देखा था, 
काम का कोई लिंग नहीं होता, 
ये समझ यकीन बनने की ये शुरुवात थी

मैं तेईस का था और वो सब
२०, २१, २२ की
रोज की बातें, नये सच से मुलाकातें,
होमोसेपियन से आगे जँहा और भी हैं, 
कंधों को मिलाना मैंने यहीं सीखा था,
ये मेरी नज़ाकत की शुरुवात थी

मैं छब्बीस का था और वो चौबीस की, 
उसको रोमांच था और मैं तो था ही, 
मैं सोच था वो यकीन थी,
जितनी ज़हीन उतनी हसीन,

अपने आप में तय,  
साथ से अलग, लिये अपने फ़लक,
मेरी दुनिया की पहली औरत, 
जिसे संपूर्ण होने के लिये
मां बनना जरूरी नहीं था, 
खेलने की शुरुवात मैंने उसके साथ की थी,

मैं अठ्ठाईस -तीस का वो छब्बीस-अठ्ठाईस की, 
मेरी ज़बरजस्ती थी कि वो कामयाब बने, 
और वो अपनी इच्छा की मलिका, 
दुनिया के पैमानों से नपने को नतैयार
औरतवाद समझने की शुरुवात मैंने उससे की थी! 

मैं पैंतालिस और वो दो कम, 
मेरे मर्द होने की बीमारी अभी भी,
थोड़ी-बहुत बाकी है,
पर डॉक्टर साथ है, और उम्मीद 
अभी बाकी है!
कोशिश अभी ज़ारी है, 
एक दिन मैं भी नामर्द बनूँगा!

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मेरी ज़िन्दगी बुनने वाली सब महिलाओं को समर्पित!☺

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।