सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कैसे कहें कि इश्क़ है!

शौक इश्क है, कद्र इश्क है,
समझ सके किसी का,
वो दर्द इश्क़ है!
इश्क़ नज़र है,
मिलना,


झुकना,
फेर लेना, तरेर लेना,
चुराना, नचाना
कभी बचना, कभी बचाना
इश्क इलाज़ है, मर्ज़ नहीं,
रवैया है दिल का, फ़र्ज़ नहीं, 

बचपन है, बचपना नहीं,
सोच में पड़ गये, फ़िर इश्क़ क्या?


इश्क़ सफ़र है, रुकने का नाम नहीं,
क्यों आप किसी जिद्द पर अड़े हैं?
'हम ऐसे ही' तारीख़ हो गयी बात है,
हाथ में हाथ है अब बदले हालात हैं!

इश्क़ एकतरफ़ा ही होता है,
इसमें इतफ़ाक तमाम होता है!
जरुरत होती है किसी को,
कहीं फ़क़त ज़ज़्बात होता है!

इश्क़ ज़ज्बात है, हरदम किसी का साथ नहीं,
अपने से भी कीजे थोडा, यूँ बुरे हालात नहीं!!
इश्क़ नज़र है, हरदम नज़र मिलने की बात नहीं,
अपने गरेबाँ झांकिए ये आइनों की बात नहीं!!

वो लम्हा जब आसमाँ के नज़दीक खड़े,
बादलों से बतियाना इश्क़ नहीं तो क्या?
और अचानक नज़र आये फूल को उठा,
सूंघ कर मुस्कराना इश्क़ नहीं तो क्या!

रास्तों में एक मोड़ है इश्क,
मुसाफिरी आशिक़ी का नाम है!
क्या फर्क पड़ता है हमसफ़र, कौन,
और कितनी दूर कोई मक़ाम है?



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

साफ बात!

  रोशनी की खबर ओ अंधेरा साफ नज़र आता है, वो जुल्फों में स्याह रंग यूंही नहीं जाया है! हर चीज को कंधों पर उठाना नहीं पड़ता, नजरों से आपको वजन नजर आता है! आग है तेज और कोई जलता नहीं है, गर्मजोशी में एक रिश्ता नज़र आता है! पहुंचेंगे आप जब तो वहीं मिलेंगे, साथ हैं पर यूंही नज़र नहीं आता है!  अपनों के दिए हैं जो ज़हर पिए है जो आपको कुछ कड़वा नज़र आता है! माथे पर शिकन हैं कई ओ दिल में चुभन, नज़ाकत का असर कुछ ऐसे हुआ जाता है!

मेरे गुनाह!

सांसे गुनाह हैं  सपने गुनाह हैं,। इस दौर में सारे अपने गुनाह हैं।। मणिपुर गुनाह है, गाजा गुनाह है, जमीर हो थोड़ा तो जीना गुनाह है! अज़मत गुनाह है, अकीदत गुनाह है, मेरे नहीं, तो आप हर शक्ल गुनाह हैं! ज़हन वहां है,(गाज़ा) कदम जा नहीं रहे, यारब मेरी ये अदनी मजबूरियां गुनाह हैं! कबूल है हमको कि हम गुनहगार हैं, आराम से घर बैठे ये कहना गुनाह है!  दिमाग चला रहा है दिल का कारखाना, बोले तो गुनहगार ओ खामोशी गुनाह है, जब भी जहां भी मासूम मरते हैं, उन सब दौर में ख़ुदा होना गुनाह है!

जिंदगी ज़हर!

जिंदगी ज़हर है इसलिए रोज़ पीते हैं, नकाबिल दर्द कोई, (ये)कैसा असर होता है? मौत के काबिल नहीं इसलिए जीते हैं, कौन कमबख्त जीने के लिए जीता है! चलों मुस्कुराएं, गले मिलें, मिले जुलें, यूं जिंदा रहने का तमाशा हमें आता है! नफ़रत से मोहब्बत का दौर चला है, पूजा का तौर "हे राम" हुआ जाता है! हमसे नहीं होती वक्त की मुलाज़िमी, सुबह शाम कहां हमको यकीं होता है? चलती-फिरती लाशें हैं चारों तरफ़, सांस चलने से झूठा गुमान होता है! नेक इरादों का बाज़ार बन गई दुनिया, इसी पैग़ाम का सब इश्तहार होता है! हवा ज़हर हुई है पानी हुआ जाता है, डेवलपमेंट का ये मानी हुआ जा ता है।