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रंगत रम के!

 छाए हुए या समाए हुए,
अपनी धुन में रमाए हुए,
दुनिया को अपना बनाए हुए,
बन-संवर कर आए हुए,
न बने हुए न बनाए हुए,
यूँही बस एक शाम को,
निकल आए बस नाम को,
हक़ीकत के समझान को,
उम्मीद के अजमान को,
काहे तुम नज़र झुकाते हो,
क्यों किस्मत को आज़माते हो,
क्यों झूठ मूठ हो जाते हो,
रंग जाओ,
रंगत लाओ
रम जाओ,
सच
सामने है!

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