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कुछ और सफ़र!



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एक और सफर
एक और डगर
एक और नज़र
एक और असर!

एक और सुबह,
एक और दोपहर,
जी भर के किए,
फिर
कुछ और कसर?


ख़ूब नज़ारे,
वक्त ख़ूब गुजारे,
रह रह के इशारे,
क्या है जो पुकारे?




बहुत दूर आ गए,
कहीं!?
बहुत नजदीक आ गए,
कहीं!?
अगर यही है ज़मीं?
फिर क्या है कमीं?


क्या छूट नहीं सकता?
क्या छोड़ नहीं सकते?
क्या जुटा नहीं है अभी?
क्या जोड़ नहीं सकते?


वो भी हम थे
ये भी हम हैं,
बहुत ज्यादा थे वहां,
यहां थोड़े कम हो गए,
फुर्सत से बैठे
और हम हो गए!!

वहां खुद से शिकायत थी,
यहां खुद से गुजारिश है,
जो मर्ज़ी है अपनी,
वो हो अपनी नवाज़िश है!


आगे और भी जाना है?
ये कैसा बहाना है?
कुछ खो गया है कहीं?
या कुछ और गवाना है?



हाँ! सफ़र और भी है!
डगर और भी हैं,
नज़रिया एक यही है,
अभी असर और भी हैं,
जी तर गया ये सोच,
अभी कसर और भी है!!

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