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जून, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अरमान, जज़्बात और सामान

कुछ लम्हे उम्मीद के, कुछ साथी नसीब के, जिंदगी अब भी गुज़र रही है करीब से अरमान सपनों मे आसान बनते हैं आँख उठती है तो आसमान बनते हैं इरादॊं के सामान बनते हैं, बेहतर है आप अपनी जान बनते हैं हर जज़्बात कहाँ शब्दॊं मै बयां होते हैं, कुछ अरमान रंगॊं मै जवां होते हैं, हर सच्चाई नज़रॊं से नज़र नहीं आती, वक्त के दीवारॊं पर निशाँ होते हैं नजर उठ कर कहाँ तक पहुंचेगी, उम्मीद अब कौन से अरमानो को सीचेंगी, अपने एहसासॊं से जुड़े रहिये, पुकार आपको कशिश बन कर खींचेगी.. क्यॊं इंतज़ार करते हैं आप ही जिन्दगी हैं इरादे आप के, आप की बंदगी हैं, कदम उठाइये और जमीं नज़र आएगी सपने हॊंगे और नींद नहीं आएगी अश्क बहते हैं ज़ज्बातॊं कि जमीं पर उम्मीद कायम रहे जरा यकीं कर मुस्करा और मौसम को हसीं कर हल्का लगेगा, चल मुश्किलॊं को यतीम कर कुछ नयी बात करें अपने होने में क्या मजा, जो है, उसे खोने में आज जी भर सो लो, रात होने में सपने, काम आयेंगे सुबह बोने में तुम, सफ़र हो अपना! तो रास्ता क्या हो ? मोड़ मिलेंगे सो वास्ता क्या हो सच को हमसफ़र रखना क्या सोचें अंजाम क्या हो

ऊंट की करवट, रंगे गिरगिट, तमाम गिटपिट, that's it!

रात आई है, और दिन को खबर करते हैं, कौन जाने मुट्ठी में कितने लम्हे बचे हैं, मेरे हालात मेरे होने को असर करते हैं शरमाते हैं, भरमाते हैं, आइना देखने से कतराते हैं, सवाल भी बेशरम हैं, रह रह कर सर उठाते हैं, एक और रात हो गयी, खुद को नज़र ना आ सका, फिर भी अपने साथ हूँ, कुछ खास हूँ, या खाक हूँ  ऊँट को बैठना ही है किसी करवट तो बैठेगा, भावनाएं दबाए रहिये, दिल किसी दिन ऐठेंगा ! कल किस करवट बैठेगा, 'आज' ये सोच कर ऐंठा है, शफक पर एड़ियों खड़ा है, कैसा चिकना घड़ा है? युँ गुम होने के लिये जगह कहाँ लगती है मेरे होने से ही तस्वीर बदलती है तस्वीर में रहुं पर नज़र् ना आयुं ये बात अपने रंगों को कैसे समझाऊं मेरे फलक, मेरे खुदा, कहाँ आपसे हैं ज्यादा जुदा ! नवाज़िश आपकी,रवायत खाक की, यही हैं मेरी दवा. आप देख सकते तो कहते रौशनी की कमी नहीं, नज़र आने के लिये फ़िलहाल दूसरी जमीन नहीं ! आप दौड़ते हैं, और खुद को पीछे छोड़ते हैं इंसान होना भूल गए? क्यों पीठ मोड़ते हैं? आँखों का अँधेरा गर रात हो जाये ख़ामोशी से ही सारी बात हो जाये

भटकते रास्ते

लौट आये अनजान शहर, चंद रोज गुमनाम सहर, कुल ज़मा फिर चार पहर, भटकेंगे मन, जरा ठहर चल मुसाफिर बाकि हैं सफर और इधर, झोली बांधे बांधे ही सराय को घर कर रास्तों के अज़नबी, और अज़नबी के रास्ते, सफ़र अधुरे कितने, चंद मुलाकातो के वास्ते! पलक झपकते ही बुलावा आयेगा, हाथ आये है लम्हा, उसको ही सुकूं कर! बड़ी मेहनत से आराम करते हैं, फुर्सत में हम काम करते हैं नए हालात हैं हर मोड़ पर, हम कहाँ किसी को राम करते हैं यूँ नहीं कि हम बदलते नहीं, पर अपनी चाल चलते हैं, रुकने का वक़्त आया तो चलने का जिकर करते हैं चलते तो सब हैं क्या हर कोई मुसाफिर है? कदम मिलते हों तो क्या हमसफ़र वाज़िब है?

प्यार की अनर्थगणित

चलो जिन्दगी कि गणित बदल दें, उम्र प्यार कि हो, (जितनी बढे उतना अच्छा), दिन कि जगह दूरियों की सोचें, (जल्दी गुजर गया तो अच्छा) महीने मुलाकातों से बदलें, और साल लोगों से जुड़ने पर, जब दिल आये तो वक़्त थम जाये और टूटे तो काफ़ुर हो जाये वार, मिज़ाज़ से बदलें,   प्यार सोमवार, इकरार मंगलवार, यार बुधवार रुठ गुरुवार, मन्नतें शुक्रवार, सुलह शनिवार, रंगीला रविवार, वैसे दिन तो लंबा होता है, क्या हिसाब हो, प्यार में हर दिन एक साल है, महीने लम्हों से बने,  और हफ़्ते पल पल के हों, आप इश्क़ में हैं, तो समझेंगे, मौसम बदलते देर नहीं लगती, दिल की धड़कनें, घड़ियों से नहीं चलती हालात महीनों नहीं संभलते, हाथ में हाथ हो, तो युग बदल जायें मौसम नहीं बदलते, दिल के केलेंडर, किसी फ़ोर्मुले पर नहीं चलते इश्क़ के खेल में गणित फ़ेल है, दुनिया सर पे उठा ली,  और ये मत समझना कि हिसाब में कमज़ोर हैं, दिल में चोर है, या दाढी में तिनका, घडियाँ गिनी हैं  पल पल सहेज़ के रखा है,  हर लम्हे का हिसाब है, पहली नज़र, खामोश असर, बरसों सबर, वो हसीन सहर, नज...

दिन रात

रात बैठी हे सिऱहाने पर, तुली है आखॊं में आने पर पर जहन मश्कुर है, कैसे बैठे जमाने के पैमाने में सुबह पैरॊं तले सिकुडी पड़ी है, ये घडियों की गुलामी बड़ी है अपनी कौन सी अड़ी है, गुजर जाये जो जल्दी पड़ी है! शाम ऐसे इतरा रही है, जैसे गुजरना ही नहीं है, दिन गया तो रात सही, कुछ करना ही नहीं है. धुंध छाई है, आज रौशनी ही परछाई है, ये कैसी सुबह है, सूरज ने ली अंगडाई है सुबह कि ठंड से जल गया सूरज, मन ठान के फिर चल गया सूरज, ओड़ती चादरॊं ने अहं को आवाज़ दी, चल गयी दुनिया, जल गया सूरज रात के पहलु में बैठे दिन कि बात करते हैं, ठिठुरती दीवारों में ख्यालॊं कि राख करते हैं, ठहरी अंगडाईयॊं को कहाँ कुछ खबर है, यूँ ही हम अक्सर बात करते हैं ! एक दिन की तीन करवट, हर मुश्किल नहीं पर्वत कुछ हलचल है दिल की, कुछ जहन ने की हरकत

रास्ते के कंकड़

फुर्सत के दिन, या दिन में फुर्सत नहीं, देखिये करवट लेती हैं हसरतें कहीं, दिल की हरकतों के क्या दाम कीजे शौक अच्छे हैं, काम मत कीजे! हम अपना सफर होँगे, अपने रास्तों का असर होँगे, मील का पत्थर नहीं बनना, काबिल हमसफ़र होँगे उनके देखने में कुछ ऐसा असर, तलाश करते हैं कहीं कोई कसर, उम्मीद को क्या समझाएं, नज़र-अंदाज़ हैं या अंदाज़-ए-नज़र ! खुद को खोना है, खुद को प्यार करना उम्मीद से आज़ाद हो, फिर यार करना आपने सपने चुने, और हम काबिल बनें? तस्वीर आपकी, रंग हम क्यों  बनें? अधूरे अल्फाज़ रास्ता भटकते हैं, कदम कब इनकी राह तकते हैं,, हो गए अजनबी अनगिनत लम्हे, अब हम आइना तकते हैं ! वक़्त चलता है, फिसलता है, टलता है, निकलता है मुश्किल हैं ऐसे लम्हे जब खुद का साथ मिलता है चलता है, मुड़ता है, मिलता है बदलता है आपके पैरों से ही रास्ता निकलता है.... ख़ामोशी रास्ता ढूंड लेगी, तुम साथ चलते रहना खुद तक पहुँच जाओ तो अपना सलाम कहना,

सफ़र, नज़र, असर, सहर, कहर

एक और सफर नज़र में है, एक और कदम असर में है, निकल पड़े हैं फिर रास्तों पे, एक और सुबह सहर पे है पलटते रास्ते, थके हुए सवाल, ऊंघती उमीदें, दम तोड़ते जज़्बात, बड़ते कदम, ललचाते प्रश्नचिन्ह, नज़र आसमान, ये एहसास असीमित संभावनाओं से कोई अवकाश नहीं, फिर भी कोई प्यास नहीं साहिल होने कि तमाम मुश्किलें हैं, क्या मुमकिन कोई आस नहीं? क्या नया क्या पुराना है करवट लिये दिन रात बैठे हैं लम्हे तैश में ऐठें हैं अपनों से दूर हो कर अपने ही पास बैठे हैं आपकी नजर है, आपकी परख है, आपकी कवायत है, आपका फरक है! किसकी गरज़ है, किसको कसक है, तज़ुर्बा किसका है, किसका सबक है! इंतज़ार पर यकीं  कोने में छुप कर बैठी हैं शामे हंसीं, नज़र के भागने से दिन नहीं बदलते सच बड़े महीन होते हैं, नाज़ुक सारे यकीं होते हैं, मेरे होने ना होने से क्या गर आपके पैर जमीन होते हैं! आईना चेहरा नहीं दिखाता, सच्चाई दिखाता है, दौर ही ऐसा है , सच पर किसको यकीं आये? ख्याल सबके पैर पसारे हैं, आप क्यों बैठे किनारे हैं तजुर्बे आपके भी अल्फाज़ मांगते हैं कौन कहता है आप बेचारे हैं !

काले सच

सुरज की गर्मी से जल कर काले बादल सफ़ेद हो गये, सच के मान्यताओं से मतभेद हो गये हर चीज़ जल कर राख नहीं होती मिट्टी में मिलने से दुनिया खाक नहीं होती सारी शैतानियां लाख नहीं होती लाख कोशिशें दिमाग की, यकीं बिना दिल पर छायी धुँध साफ़ नहीं होती, पेड़ आसमान छू रहे हैं, और पंछी फ़िर भी, लाख कोशिश, दूरियां कम नहीं होती,  अब इसे उड़ान कहें, या  सोच की थकान, आप कहां पहुंचेंगे, कब होंगे, दूरियों के उस ओर, ये इस बात से तय होगा कि  आप अपने रास्तों से चल रहे हैं या अपने रास्तों में पल रहे हैं, तस्वीर आपकी नज़र है, या,  हर अंजाने मोड़ पर आप हाथ मल रहे हैं, प्रक्रिति की दीवारें, कल से,  काल से सीधी खड़ी हैं,  अपने पैरों तले बहती, नदी को छोटा करते,  पर  जब ढहती हैं, तो ऐसे बहती हैं जैसे यही सत्य है, खोना ही होना है, एक अगर आप अब भी खड़े है, क्योंकि घुटनों में बल है, तो सोच लीजिये, क्या ये छल है? जो सच है वो घुटनों के बल है!  (सुरज की आंकाक्षा और बादलों के खुलेपन, विनम्र नदिओं के इरादे और खिसकत...

नवीन मन, नव्य स्रजन

क्या बदलता है, समय के साथ, या समय के हाथ, हालात मुश्किलें,रास्ते,सोच, संभावनाएँ ,उम्मीदें ,आकांक्षाएं पहचान, और एक दिन कोई परिचित अजनबी, समय के दो ध्रुवॊ को एक लम्हा कर देता है, न पीछे मुडने की जरुरत न आगे बढने की चिंता, न कोई शुरुवात, न कोई अंत, जो मिले उसका भला, जो न मिले उसका भी भला, कितना नायाब है, रिश्तॊ में फकीरी का ये सिलसिला, हालत की अजनबियत ,  वक्त को बेदाग़ बना देती है, दिल साफ़ होते हैं , मैं, और मैं हो गया हूँ, तुम, और तुम हो गए हो, समय कितना भी बदले कभी बदला नहीं लेता, एक आज़ाद मुलाकात, उस मकाम पर, जहां किसी को, अपना रास्ता नहीं बदलना, न चाल चलनी है, अपेक्षा में TTMM(तेरा तू , मेरा मैं), अच्छा सौदा है! समय का गुलाम नहीं है,  अपनापन अच्छी मुलाक़ात रही, शुक्रिया! नविन मन, नव्या स्रजन (नवीन और नितिशा के साथ मुलाक़ात का विवरण)