कौन जाने मुट्ठी में कितने लम्हे बचे हैं,
मेरे हालात मेरे होने को असर करते हैं
शरमाते हैं, भरमाते हैं, आइना देखने से कतराते हैं,
सवाल भी बेशरम हैं, रह रह कर सर उठाते हैं,
एक और रात हो गयी, खुद को नज़र ना आ सका,
फिर भी अपने साथ हूँ, कुछ खास हूँ, या खाक हूँ
सवाल भी बेशरम हैं, रह रह कर सर उठाते हैं,
एक और रात हो गयी, खुद को नज़र ना आ सका,
फिर भी अपने साथ हूँ, कुछ खास हूँ, या खाक हूँ
ऊँट को बैठना ही है किसी करवट तो बैठेगा,
भावनाएं दबाए रहिये, दिल किसी दिन ऐठेंगा !
कल किस करवट बैठेगा, 'आज' ये सोच कर ऐंठा है,
शफक पर एड़ियों खड़ा है, कैसा चिकना घड़ा है?
युँ गुम होने के लिये जगह कहाँ लगती है
मेरे होने से ही तस्वीर बदलती है
तस्वीर में रहुं पर नज़र् ना आयुं
ये बात अपने रंगों को कैसे समझाऊं
भावनाएं दबाए रहिये, दिल किसी दिन ऐठेंगा !
कल किस करवट बैठेगा, 'आज' ये सोच कर ऐंठा है,
शफक पर एड़ियों खड़ा है, कैसा चिकना घड़ा है?
युँ गुम होने के लिये जगह कहाँ लगती है
मेरे होने से ही तस्वीर बदलती है
तस्वीर में रहुं पर नज़र् ना आयुं
ये बात अपने रंगों को कैसे समझाऊं
मेरे फलक, मेरे खुदा, कहाँ आपसे हैं ज्यादा जुदा !
नवाज़िश आपकी,रवायत खाक की, यही हैं मेरी दवा.
आप देख सकते तो कहते रौशनी की कमी नहीं,
नज़र आने के लिये फ़िलहाल दूसरी जमीन नहीं !
आप दौड़ते हैं, और खुद को पीछे छोड़ते हैं
इंसान होना भूल गए? क्यों पीठ मोड़ते हैं?
आँखों का अँधेरा गर रात हो जाये
ख़ामोशी से ही सारी बात हो जाये
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