हम अज़नबियॊं की उड़ानॊं से भ्रमित अपने धरातल से अनिभिज्ञ , अपनी आंखॊं पर रंगी पर्दे ड़ाले , अपने इन्द्रधनुष की अनुभूति से अंजाने ! अपने जीवन की रफ़्तार बढाते , चले दुनिया से कदम मिलाने , बिन देखे , बिन सोच विचारे अंजाने पंखॊं के लाचारे ! दुनिया एक हो रही विज्ञान से , दुरियां मिट रही आसमान से , हम भी बढ सकते हैं अभिमान से लेकिन सिर्फ़ अपनी पहचान से ! प्रगति की ये परिभाषा नहीं , कि हममें कोई प्यासा नहीं , इंसान की जो प्यास है वही प्रगति का इतिहास है ! पैसा सिर्फ़ एक ज़रुरत है , और जरुरत आदमी की कमज़ोरी कमज़ोरी हमारी पहचान है , आखिर किस बात का अभिमान है ? अपनी खुशी को लेकर सब परेशान , ये हमारी तरक्की के विचित्र आयाम , जिसके पास काम , करे आराम कैसे और जो बेकाम , वो करे आराम कैसे? बंदुकें सरकार बन गयी हैं , धर्म की राहें दीवार बन गयी हैं , इंसान की खोज , ग़ुमशुदा की तलाश जो ढुंढे उसे वही ईनाम ! मैं अपने विचारॊं क...
अकेले हर एक अधूरा।पूरा होने के लिए जुड़ना पड़ता है, और जुड़ने के लिए अपने अँधेरे और रोशनी बांटनी पड़ती है।कोई बात अनकही न रह जाये!और जब आप हर पल बदल रहे हैं तो कितनी बातें अनकही रह जायेंगी और आप अधूरे।बस ये मेरी छोटी सी आलसी कोशिश है अपना अधूरापन बांटने की, थोड़ा मैं पूरा होता हूँ थोड़ा आप भी हो जाइये।