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नयी सुगंधें!

मुश्किलें हांसिल हैं उनको, जो सफ़र के काबिल हैं,
क्युँ तवज़्ज़ो उन सोचों का जो अभी तक जाहिल हैं!

पेशानिओं के बल गिनने को फ़ुर्सतें न हो हांसिल,
मुस्करा और करती जा अपने सारे दिन काबिल!

मुसरुफ़ियत के दिन सारे, अब तेरे पैमानों में,
हो शामिल पहले खुद ही, तु अपने दीवानों में!



जिक्र हो तेरा अब, और कई अफ़सानों में,
बिक रही है जो किताबें नयी-नयी दुकानों में!

ऐसे भी मोड़ गुज़रेंगे, जो कहेंगे काफ़िर है
याद रहे फ़क्त इतना, तू एक मुसाफ़िर है!


उम्मीद कोई यतीम नही,कहीं सबके ठिकाने हैं,

अब नयी सुबहों को तेरी, नये कई आशियाने हैं!

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