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कौन सी उड़ानें !


हम अज़नबियॊं की उड़ानॊं से भ्रमित
अपने धरातल से अनिभिज्ञ,
अपनी आंखॊं पर रंगी पर्दे ड़ाले ,
अपने इन्द्रधनुष की अनुभूति से अंजाने !

अपने जीवन की रफ़्तार बढाते ,
चले दुनिया से कदम मिलाने,
बिन देखे, बिन सोच विचारे
अंजाने पंखॊं के लाचारे !

दुनिया एक हो रही विज्ञान से,
दुरियां मिट रही आसमान से,
हम भी बढ सकते हैं अभिमान से
लेकिन सिर्फ़ अपनी पहचान से !

प्रगति की ये परिभाषा नहीं ,
कि हममें कोई प्यासा नहीं ,
इंसान की जो प्यास है
वही प्रगति का इतिहास है !

पैसा सिर्फ़ एक ज़रुरत है ,
और जरुरत आदमी की कमज़ोरी
कमज़ोरी हमारी पहचान है,
आखिर किस बात का अभिमान है ?



अपनी खुशी को लेकर सब परेशान ,
ये हमारी तरक्की के विचित्र आयाम ,
जिसके पास काम, करे आराम कैसे
और जो बेकाम, वो करे आराम कैसे?


बंदुकें सरकार बन गयी हैं ,
धर्म की राहें दीवार बन गयी हैं ,
इंसान की खोज, ग़ुमशुदा की तलाश
जो ढुंढे उसे वही  ईनाम!

मैं अपने विचारॊं का कृतज्ञ
मेरे रास्ते हैं पृथक ,
अंधी दौड़ में, मैं नहीं शामिल
मेरा अतीत है मेरा हामिल !

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