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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धूप छाँव के खेल!

धूप छाँव के खेल हैं सब, जीते क्या हारे?  नाप-तोल की दुनिया के  हम सब बेचारे! धूप छाँव के खेल हैं सब, किस करवट क्या हो? किस मोड़ मुड़ें, क्या चाल चलें, रुख क्या हो? धूप छाँव के खेल ये सब, अब आप बताएं?  सच के ही सब खेल क्या जुगत बिठाएं?  धूप छाँव के खेल, और हर चीज़ खिलाड़ी,  जो बनता होशियार है बस वही अनाड़ी! धूप छाँव के खेल हैं सब, पलक झपक ले प्यारे!  एकही सच पर टिके जो सब, वो मत के मारे!! धूप छाँव के खेल हैं सब, किस ओर चलें?  क्या संग, किस रंग, किस ढंग कौन मिले? धूप छाँव के खेल हैं सब, किसके हिस्से क्या आए? सवाल ये भी आएगा, 'आप! क्या अपनी जगह बनाए?

चौबीस दूनी...?

चौबीस दूनी अड़तालीस, अब भी उतनी ही ख़ालिस, वही प्यास, वही आलस (सुबह 6 बजे) न गुस्सा कम, न प्यार, बातें चार, मर्ज़ी से मन और मर्ज़ी से लाचार, घर का अचार, सुविचार!! रंग बदले हैं (समझ जाइए) पर ढंग नहीं, साथ बदला है पर संग नहीं, ताकत बढ़ रही है, कमजोरी कम नहीं होती, कितनों का यकीन हैं, नज़र महीन है, कदम कदम चाल है, और उफ़क़ परे ख्याल है दर्द गहरे हैं, और क्या, वही ख़ास है अब वज़ह, सवाल मासूम हैं, "ऐसा क्यों नहीं? समझते क्यों नहीं?" रास्ते दिखते हैं पर कदमों से दूर हैं, सौ मजबूर हैं, पर हाथ खड़ें नहीं हैं, कंधे झुके नहीं हैं, उम्मीद ज़ारी है, जो बन पड़े , बुनते हैं बड़े गौर से सुनते हैं, साथ उनके, सब सपने बुनते हैं! रास्ते अभी भी वैसे ही,  तय नहीं हैं, कहीं पहुंचना है ये चलने की वज़ह नहीं है! रुकना वज़ह है केवल, कोई तय जगह नहीं है! अजनबी नहीं हम,  आप पहचानते नहीं हैं, आपके आइनों को हम मानते नहीं हैं!

विजय है, वज़ह है!

मुसाफ़िर भी हैं, अपना ही सामान भी, रास्ता भी हैं आप, रास्तों की जान भी!! कितने बुलंद हैं आपके साथ फलकर, दुआ क़बूल हैं आपके साथ चलकर! सदा भी है, अदा भी है, नज़ाकत भी, काम की चीज़ है आपकी बग़ावत भी! कितने हुनर हैं जो आप के क़ाबिल हैं, हौंसला हैं आप हमारा और हासिल भी! ख़ुद से हैं आपको अपनी शिकायतें,  उस्तादी की ये बेहतर रवायतें हैं!! इरादे कम नहीं, इरादों के गम जरूर  कितना कुछ करने को चलना है दूर! खामियाँ सब अकेली पड़ जाती हैं, आपकी खूबियां उनको शरमाती नहीं!! जात-पात, बुरी बात, कदम कदम पर घात, आपसे क्या बोले कोई मुश्किलों की बात? तहज़ीब और रवायतें कुलजमा साज़िश हैं, आपके जज़्बे से कदम कदम वो खारिज़ हैं! अब भी कहाँ आपकी मुश्किलें आसान हैं, कायम रहे आपके चेहरे जो मुस्कान है!  #आमीन (विजय कई सालों से हमारे साथी हैं, उनके साथ काम कर के, उनके दो दशक से ज्यादा के काम की बातें सुनकर, और उनके सीखने और सिखाने के जज़्बे को सलाम है)‌ जय भीम विजय भाई!

कोरोना का रोना!

भूख कहाँ बीमारी है, मजबूरी कैसा रोग है? जोग है पाखंड का और  ताकत मनोरोग है! भूख आग भी है और पानी भी हवा होने वाली चीज़ नहीं, भड़केगी या बह जाएगी एक और ज़माना कर जाएगी! सवाल मत उठाइए, बस मान जाइए, भीड़ में आइए या भाड़ में जाइए! आम आदमी हैं औकात में आइए, माना जाइए या पाकिस्तान जाइए! कहा है तो कुछ सोच कर ही न, काहे दिमाग की बत्ती जलाइए? सच आलसी हैं आपके  या होशियार, ख़बरदार है? या आप बस हाँ में हाँ मिलाते  सवालों के गुनहगार हैं?। एकता की खोखली बात है, अनेकता की लगी वाट है! घर बैठे दिए जलाते हैं क्या ठाठ है, भूखे मजबूर को लाठी लात है! हमारे लिए तो एक वो ही हैं, महान हम जान रहे है आप जान स जाइए! 'चुप रहिए, सर झुका रहिए', सरकार कहे! जिसके भी सवाल हैं बस वो खबरदार रहे!! अंधेरे को देर नहीं और देर को अंधेर है झूठ है जो कहते कि अब भी देर-सबेर है! नफ़रत की ज़िहाद छेड़ी है  हिंदुत्व ठेकेदारों ने, बस भक्ति, श्रद्धा से  कब इनका काम चला है !

तालाबंदी 2 बनाम मौत का फरमान!

ज़िंदगी से मिलने को ताउम्र चला है, बिना चले कब उसका काम चला है? रास्तों में रोक दिया है जिंदगी को, किसको बचाने का इंतज़ाम चला है? मुट्ठी दो मुट्ठी चावल थमा देते हैं, खैरात हो जैसे ये काम चला है? घर बैठे भक्ति से हुक्म बजा लाते हैं, बिन सोचे समझे सब काम चला है? चकित हैं मजदूरों की बेशुमार भीड़ से, पढ़ा-लिखा मुल्क क्यों हैरान चला है? किसी की मजबूरी को मज़हब बना दिया, कैसा इन दिनों खबरों का निज़ाम चला है? वो काम बोले जो चुटकी बजाते हो गए, ध्यान बटाने से बाज़ीगर का नाम चला है! मजदूरों को मरने का काम मिला है, लॉकडाउन में ये असल काम चला है! भूख प्यास मजबूरी का लंबा सिलसिला है, बिन काम कैसे मजदूरों का काम चला है! डॉक्टर भी खा रहे हैं मार, गुस्से ओ नफरत की? कुछ ऐसा सरकार से पैग़ाम चला है? अपना धर्म सनातन, मज़हब उनका जिहादी, किस रास्ते इस दौर का इंसान चला है?

जान है तो पान है!

जान है तो जहान है ये मूर्खता का ज्ञान है, सरकार ने कहा है तो अंधभक्तों का कान है मिडिल क्लास की रट मेरा भारत महान है! ओ रईसों की वाइन है चमक है शाइन है! भूख में क्या शान है? भीख है या दान है? किसका इसमें मान है? न जमीं अपनी, अजनबी आसमान है, सारे मजबूर एक छत में कहते हैं आप, ध्यान है? मुट्ठी भर चावल, दाल कहाँ? न सब्जी का नामोनिशान है? चल पडे हैं मीलों, कोसों, बेदिल आप उनको कोसें? जानिए, मनोविज्ञान है, जो उनका जहान है वो ही उनकी जान है! गांव, घर, परिवार,  गली चौबार, अपना  समाज व्यवहार सब मिल कर जान है? कोई टापू नहीं अकेला एक पूरा इंसान है! भरोसा किस पर करेंगे? काम बचा नहीं, सरकार सोचा नहीं, बंद हैं बस, ट्रेन, कहते है लॉकडाउन है? लाखों सड़क पर, फ्लायओवर सर पर, थोड़ा मिला बहुत समझना कहाँ कोई सम्मान है? हथेली पर जान है, दोगला जहान है, कारों में, बंगलों में ए सी ऑन है!! किसकी जान है? ये कैसा जहान है? क्या आपको तनिक भी इसका भान है? बंजर है जमीन किसकी? किसकी उम्मीद शमशान है?  भीड़ में अकेले ओ सारे रास्ते वी...

बेला चाओ, गो कोरोना गो!!

उम्र भर का आराम कैसे भुला दें? भरपेट बचपन ओ जवानी का सुकून कैसे गँवा दें? वो गद्दे, वो रजाई, मुँह ढक चददर, कूलर की हवाई, वो चारदिवारी, वो छत, वो क्यारी  वो अदब सरकारी, बाप जिला अधिकारी ऊपर की जात हमारी, धर्म राम सवारी, नास्तिक बीमारी, हमारा कौन बिगाड़े? सब चीज़ जुगाड़ है, 6 तरह कि दाल, चावल सफेद और लाल, सब्ज़ी, फल, घी, दूध तेल, वजन घटाने में अब भी फेल  मेहनत सुबह की दौड़ है,  आरामतलबी,  नैटफ्लिक्स, पैसा डकैती (मनी हाइस्त) में नए मोड़ हैं!! बेला चाओ चाओ चाओ सड़कों पर आओ, आवाज़ उठाओ, आओ साथ, आओ आओ , साथ आओ वो कौन हैं (बांद्रा टर्मिनस पर)  जो शोर करते हैं, काम नहीं, बस फल भरते हैं, आवाज़ बहुत है, तोड़ने की नहीं, अफ़सोस, ये टूटने की है! रिश्ते, उम्मीद से, हालात से इतना दबाया है हमने इन्हें ये बस जीते हैं, किसी तरह, टुटे हुए, और उन्हीं टुकड़ों को  बचाने में लगे हैं, हक़ कहाँ है कोई, सब घर जाने चले हैं! बेचारगी की जमीन में ख़ुद को दफ़नाने! आप हम सब जानते हैं, हमदिली भी है, मदद कोई यहां से चली भी है, दुःख, गुस्सा...

दुआ सलाम!

रास्ते में हम मुस्कराए तो वो सलाम करते हैं, आसानी से एक दूसरे को इंसान करते हैं! फेसबुक पर ज़रा बहस हुई कि इतने हैरान हो गए, आसानी से अपनों को शैतान करते हैं! टीवी पर कह दी दो मन लुभावन बातें जयहिंद बोल, ज़रा से मेकअप से उनको भगवान करते हैं! न्यूज़ में दे रहे है ख़बर, डर कर, ज़ेब भर कर, कितनी झूठी खबरों को विधान करते हैं? भक्ति में धर्म के ठेकेदार बन कर दलाल बैठे हैं, वो कहें तो आप मस्ज़िद शमशान करते हैं? लॉकडाउन हुआ घर बैठ सब राम-किशन गान करते हैं, गरीब मजदूर हथेली में जान करते हैं? कोरोना क्या इतना डरा दिया कि अब लाइन करते हैं? अछूत बने हैं और झूठी शान करते हैं? पी एम केयर नॉट राहत के काम को भी वो दुकान करते हैं? अनमोल झूठ के आप कितने दाम करते हैं?

कोरोना बहके बहकाए!

कहते हैं आपदा बड़ी है, जरुरत सब साथ आएं, हाथ बटाएं, जुगत बिठाएं, कोरोना से बचें-बचाएं,  और फ़िर शुरू तमाशा,  काम की बात गुल,  मार्च अप्रैल फ़ूल- पुरा बीमारी के साथ, बेचारी से मौत डॉक्टर नर्स बिना जरूरी सामान ताली सुन कर चलाओ काम! जो बीत गई सो बात गई, बड़ी रोशन कल की रात गई, जोश जुनून जज़्बात गई, समझ को जैसे लात गई, भुल सब हालात गई, कोरोना को कहते मात गई? सोच भी जल गई, इरादे भी जल गए, फिर रोशनी की आड़ में, अंधेरों से मिल गए, भीड़ में निकल गए! ज़िंदगी जी रही है बंद कमरों में, मौत सड़कों पर मजदूर चर रही है! टीवी पर देखिए आराम से खबरें, नफ़रत आपकी रगों में पसर रही है! बंद हैं सब चारदीवारी में, वो सच जिनको आवाज़ नहीं, मासूम जिनकी परवाज़ नहीं, गालियां, थप्पड़, चीख़, दया की भीख, दस नौ आठ , दस नौ एक (10 दिन के लॉक डाउन में लगभग एक लाख फ़ोन  (1098-चाइल्डलाइन, 1091 महिला हेल्पलाईन) आए,  बच्चों और महिला को हिंसा से बचाने के लिए ) खबर सारी हिंदू भई, कुत्तन सा सोर मचाई, तबलीकी, तबलीकी बोल कान सबई ...