कहते हैं आपदा बड़ी है,
जरुरत सब साथ आएं,
हाथ बटाएं, जुगत बिठाएं,
कोरोना से बचें-बचाएं,
और फ़िर शुरू तमाशा,
काम की बात गुल,
मार्च अप्रैल फ़ूल- पुरा
बीमारी के साथ, बेचारी से मौत
डॉक्टर नर्स बिना जरूरी सामान
डॉक्टर नर्स बिना जरूरी सामान
ताली सुन कर चलाओ काम!
जो बीत गई सो बात गई, बड़ी
रोशन कल की रात गई,
जोश जुनून जज़्बात गई,
समझ को जैसे लात गई,
भुल सब हालात गई,
कोरोना को कहते मात गई?
इरादे भी जल गए,
फिर रोशनी की आड़ में,
अंधेरों से मिल गए,
भीड़ में निकल गए!
ज़िंदगी जी रही है बंद कमरों में,मौत सड़कों पर मजदूर चर रही है!
टीवी पर देखिए आराम से खबरें,
नफ़रत आपकी रगों में पसर रही है!
वो सच जिनको आवाज़ नहीं,
मासूम जिनकी परवाज़ नहीं,
गालियां, थप्पड़, चीख़,
दया की भीख,
दस नौ आठ , दस नौ एक
(10 दिन के लॉक डाउन में लगभग एक लाख फ़ोन
(1098-चाइल्डलाइन, 1091 महिला हेल्पलाईन) आए,
बच्चों और महिला को हिंसा से बचाने के लिए )
खबर सारी हिंदू भई,
कुत्तन सा सोर मचाई,
तबलीकी, तबलीकी बोल
कान सबई खा जाईं!
डर के आगे झूठ है,
अंधविश्वास अटूट है,
मूर्खता को छूट है,
हिंदू-मुस्लिम फुट है,
घर बैठे कितने क्यूट हैं!
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