दूर देखिये ज़रा इकरार है!

न जाती जमीं है,
कभी मर्ज़ी है किसी क़ि,
कभी इत्तफ़ाक़ हसीं है!
सच्चाई तस्वीर नहीं है,
न ही ज़ंजीर है,
कभी शम्स उफ़क़ पर,
कभी दिल में शमशीर है!

हर लम्हा एक बयां हैं,
हर सुबह एक दास्ताँ,
सब कुछ यहीं है,
बीच जमीं और आसमाँ!!
सच्चाई 'कुछ' नहीं है,
और 'कुछ नहीं' भी,
कुछ 'हाँ' भी है, बहुत,
ओ' कुछ 'नहीं' भी है!!

हर जिद्द के नीचे मुर्दे गड़े होते हैं!
हर झूठ हक़ीक़ी न हो यूँ भी नहीं,
सब ने अपनी-अपनी गठरी बाँधी है,
कहने से साबित कुछ नहीं!
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