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हवा-पानी ज़मीं-आसमाँ

हवा ने जब छु कर अकेलापन दूर कर दिया,
और कभी उसी ने याद दिला दी तन्हाई की!!


हवा को खुल कर छू लेने दीजे,
कई शिकवे जिंदगी के हवा होंगे!


ज़िन्दगी कभी भी नीरस लगे,
एक पत्ते पर ज़रा गौर कर लें!


मौसम बिखरे पड़े है हर ओर जीवन के,
हर पल मुस्कराने की वजह मौजूद हैं!


नज़ाकत के दौर ख़त्म हैं,
सच जलते हैं आजकल,
सर्दी में हाथ सेंकने को!!


कब समझेंगे कुदरत एक तोहफा है,
कब मानेंगे तरक्की एक धोका है!!


सर्दी सर्द नहीं अब, गर्मी पूरी उबल गयी,
प्रकृति वही है हमारी हकीकत बदल गयी!


ज़मीं देखिये आसमाँ देखिये,
ज़रा अपना जहां देखिये,
ऊँची इमारतों में बैठ,
ज़रा अपने गरेबाँ देखिये!


ये आसमां है आज, ये समां है,
आप के मुस्कराने का सामां है!


कभीकभार,
संभल कर,
पत्तों को देखें,
........
अपने को पहचानें!
अपनों को?

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