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राखसाबंधन

सलामती की बातों को क्यों जंज़ीरें लगती हैं,
नेकनज़री को क्यों रिश्ते की तस्वीरें लगती हैं?

क्यों आखिर रिश्तों को जंज़ीरें लगती हैं,
मुकम्मल होने आईने को रंग नहीं लगते!?

रिश्ते खून के सारे,कहने को मुसीबत सहारे,
इंसानियत के नाम पर हम क्यों इतने बेचारे?

क्यों रिश्तों में सिर्फ बंधना होता है,
जैसे दूध दहने को कोई गाय है?

राख सा बंधन है, ख़ाक सा बंधन है,
चारदीवारों के बीच नाप का बंधन है!
धर्म-संस्कृति पे मर्द की छाप का बंधन है!

परंपरा संस्कृति, नीयत,
किसकी, नियति किसकी?
बहना ने भाई की कलाई पे,
भाई ने बहन की आज़ादी पे,
तहज़ीब ने आज़ाद सोच पे,
जाने दीजिए,
कुँए के बाहर की बात क्यों करें!!?

(क्यों मर्द के गले में पट्टा न ड़ाल दिया जाये, सदियों से चले आ रहे कच्चे धागों ने तो इनकी नियत में कोई फ़र्क नहीं लाया?)

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