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कसम कुदरत की!

कुदरत नेमत है और,
ख़राब इंसानी नीयत,
ऊपर से ये शिकायत,
की ठीक नहीं हालात!



कुदरत शिकार है इंसानी फितरत की,
इंसान तरक्की का शिकार है!




रात भर सो उठे और सुबह इनाम मिली,
प्रकृति की सोच सहज ओ आसान मिली!




हमारी क्या प्रकृति है?
दुनिया कि क्या आकृति है?



प्रकृति से हमारा क्या रिश्ता है?
या सामान मुफ़्त ओ सस्ता है



सब एक दूसरे को कोसते हैं,
जाने कैसे हम जीवन पोसते हैं!??



रोशनी चमकती है पर अँधा कर जाती है,
सच देखने के सब तरीके बदल गए हैं!!



अंधेरो में ऐसी क्या ख़ास बात है,

सब अपने रस्ते निकल गए है!


प्लास्टिक के फूलों से सजावट सब तरफ,

दुनिया में तरक्की के नए खेल चल गए हैं !

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