बस एक टोपी ही मुसलमान थी,
उसके नीचे तो मैं पूरा इंसान था?
क्या देखा आपने के मेरा इंसान तो दिखा नहीं,
अपनी इंसानियत भी नज़र नहीं आयी?
आपके ज़हन ने कैसी मेरी तस्वीर बनाई?
वो आपकी आँखों का सुर्ख रंग,
मेरा बिखरा हुआ खून कैसे बन गया?
क्या बात हुई आपके दिल और दिमाग में?
पहली बार कत्ल किया या,
है ये आपके मिज़ाज़ में?
आप भीड़ थे या
उस नफ़रत की रीढ़ थे?
मैं समझ नहीं पाया यूँ पूछता हूँ?
मुझे तो आपका इंसान नज़र आया,
मैंने हाथ जोड़ कर ये इरादा फ़रमाया,
पर माहौल इतना क्यों गरमाया?
क्यों इतनों का इरादा भरमाया?
क्या आपने नफ़रत पाली है?
इतनी फल-फूल कैसे गयी?
ये कैसी आँखों में धूल गयी?
और आप कहते हैं आपने हाथ नहीं उठाया?
और आवाज़?
आपकी खामोशी मासूम थी?
या डरी हुई?
या अपनी ही नज़रों से गिरी हुई?
गलत हो रहा है?
आपको एहसास था?
क्या ख़ाक था?
बस एक आख़िरी सवाल है,
मैं तो मुसलमान था फिर,
मेरे कत्ल से भी "राम नाम सत्य" हुआ क्या?
चलिए आपको आपका सच मुबारक हो!
उसके नीचे तो मैं पूरा इंसान था?
क्या देखा आपने के मेरा इंसान तो दिखा नहीं,
अपनी इंसानियत भी नज़र नहीं आयी?
आपके ज़हन ने कैसी मेरी तस्वीर बनाई?
वो आपकी आँखों का सुर्ख रंग,
मेरा बिखरा हुआ खून कैसे बन गया?
क्या बात हुई आपके दिल और दिमाग में?
पहली बार कत्ल किया या,
है ये आपके मिज़ाज़ में?
आप भीड़ थे या
उस नफ़रत की रीढ़ थे?
मैं समझ नहीं पाया यूँ पूछता हूँ?
मुझे तो आपका इंसान नज़र आया,
मैंने हाथ जोड़ कर ये इरादा फ़रमाया,
पर माहौल इतना क्यों गरमाया?
क्यों इतनों का इरादा भरमाया?
क्या आपने नफ़रत पाली है?
इतनी फल-फूल कैसे गयी?
ये कैसी आँखों में धूल गयी?
और आप कहते हैं आपने हाथ नहीं उठाया?
और आवाज़?
आपकी खामोशी मासूम थी?
या डरी हुई?
या अपनी ही नज़रों से गिरी हुई?
गलत हो रहा है?
आपको एहसास था?
क्या ख़ाक था?
बस एक आख़िरी सवाल है,
मैं तो मुसलमान था फिर,
मेरे कत्ल से भी "राम नाम सत्य" हुआ क्या?
चलिए आपको आपका सच मुबारक हो!
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें