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२०१०-नौ दो ग्यारह=२०११

सोचता हूँ, हो जायूं नौ दो ग्यारह, नहीं होता मुझसे समय का बंटवारा कहते है आया नया साल, कोई नयी बात या फिर वही हिन्दुस्तानी भेड़ चाल, दिखते नहीं कोई नए सवाल, संकुचित होती मानसिकता वही चमड़ी वही खाल खुशी नए साल कि ? या जश्न २०१० से छुटकारे का, जो बीत गयी सो बात गयी, पीछे मुड़ने कि जरुरत नहीं समय बलवान है, और कुछ अपने हाथ नहीं! फिर भी आप आज नाच रहे हैं, इशारा किसका है? डोरी किसके हाथ में है?          

फकीर की लकीर?

रास्ते खत्म नहीं होते और इंतज़ार आख़ीर का कटोरा हाथ में रखना,(?)देगा रवैया फकीर का(?) रस्ते नए किये हैं तो क्यों इंतज़ार लकीर का नज़रिया मुस्तैद फिर रंग चुनिए तस्वीर का खुद ही अपने कटोरे में खैरात डालते हैं , फकीर कैसे जो खुद को पालते हैं खाली हाथ भी किस्मत से मिलते हैं आप क्यों मुट्ठी बंद किये चलते हैं? गुम हो जाऊं हवा में तो दुनिया में क्या कम होगा, खुश्क मौसम एक लम्हे को जरा नम होगा, हवाओं के रुख तो यूँ भी रोज बदलते हैं एक इल्ज़ाम है, जो मेरे सर शायद कम होगा गुजरा जो जहाँ से, क्या रास्ता वीरान होगा, भीड़ में शामिल हूँ, निकलना आसान होगा अजनबियों को ऐसे भी कौन पहचानता है वैसे भी मेरे हाथों में एक जाम होगा मैं न रहूँ फिर भी मौसम बदलते हैं मर्ज़ी है फिर भी साथ चलते हैं जमीन-आसमान का फरक है मेरे होने में तमाम मुश्किलें हैं वज़ूद खोने में

किसकी चाल चले?

रौशनी की कमी नहीं फिर उम्मीद क्यों लडखडाती है, मील के पत्थर मक़ाम नहीं होते, बाज़ार में क्यों ढूंढते हो? सचाई, भरोसा, ईमान, दुकान नहीं होते किस बोझ से झुके हो, दिल के अरमान सामान नहीं होते! आसमान खुद जमीन पर आता है, सदियों से सावन कहलाता है जीते हैं, इसलिए भाग रहे हैं या भागने के लिये जीते हैं? चूहे रेस नहीं लगाते जिंदगी जीते हैं. कोई चाल चलिए अपने अंजाम पर पहुंचेगे खरगोश होने के लिये कछुओं की जरुरत नहीं, फुर्सत की सांस अहंकार नहीं होती! सरल सा प्रश्न है ! आप जिंदगी भाग रहे हैं? ....या जाग रहे हैं?????

मोड़ के जोड़ तोड़!

उम्मीद को आसमान नहीं लगता, मुसाफिर को सामान नहीं हालत को क्या इल्ज़ाम दें, गर जज़्बे को जान नहीं   अभी लौटे हैं और चलने की सोचते हैं मेरे सफर ही मेरा रास्ता रोकते हैं अब रुके हैं तो हम मुसाफिर कुछ कम नहीं होते    साहिल को छु कर आते धारे नम नहीं होते  हर चलना सफर हो तो क्या?  रास्ता न रुके तो कहाँ ? मुसाफिर कोई रास्ता नहीं बना, चलते चलते तुम्हारे कदमों ने इसे बुना,  मंजिलों को क्या तलाशते हो,  वहीँ पहुंचोगे जो तुम्हारे क़दमों ने चुना गुजरना कोई अंत नहीं, सफर कोई अनंत नहीं,  काफिले हर मोड़ मिलेंगे, अपने आँसू काबुल हों  सब उड़ते हुए पंछी आज़ाद नहीं होते आसमान को इरादे लगते हैं युहीं कोई सफर मुकम्मल नहीं होता सफर में मुश्किलों के अँधेरे लगते हैं

गफलत ए हालात!!!!

आवाज़ गूंजती है परदे पड़ी दीवारों पर, मर्ज़ जाहिर है नज़र अंदाज़ बीमारों पर बदलती करवटें, बैचैन सलवटें, रात अपने आगाज़ पर है खामोश होते और चंद लम्हे , आज अपने आगोश में है मदहोश लम्हों तुम हमसे ज़रा दूर ही बैठो बहकने के दिन कहाँ, जिदंगी जरा होश में है होश में है जिंदगी, जाने कहां-कहां भटकायेगी, क्या खबर, ये मुलाकात खुद से, रास आयेगी? सवालों की कवायत है या कारवां ए इनायत है ? दम टूटेगी या फ़क्त जहन की हरारत है ? इरादतन कुछ कह दिया, या ख़ामोशी ए क़यामत है कलम से इश्क है या लफ़्ज़ों की शहादत है खोने में मशरुफ़, या होने को मजबूर, अपनों के पास नहीं, और अपने से दूर जो कहा है कहीं भी उस में, मैं कहीं जरुर हुँ होने को मशकूर हुँ , या न होने को मशहुर? आज भी "मैं" ही हूँ, अपनी अभिव्यक्ति में कैद, अपने जज़्बातों से क़त्ल, अपने अंदर ही मृत (जिंदगी के समंदर से इकट्ठे किये शंख, सीपी, इत्यादि इत्यादि )

इतिहास्य

विकास का इतिहास है उसकी बुनियाद, अनगिनत इंसानों की लाश है दफनाए हुए, सच कहने को "काश" है नाम – सभ्यता पता – आधुनिकता उम्र – सदियाँ बीत गयीं इतिहास गुलाम है चंद हाथों में उसकी लगाम है जो बुनियाद बन गए उनकी प्राथमिकता(F.I.R.)दर्ज नहीं, जो कमज़ोर थे, उनकी बात आज़ न करें तो हर्ज नहीं तलवार सर कलम करती है समझदार को इशारा काफी सच्चाई हमेशा हुकूमत को सर करती है, आप को अपने इतिहास पर, परंपरा पर गर्व है जाहिर है आपकी जिंदगी पर्व है, आप को क्या इल्म है लालच, वहशियत, पागलपन, जुल्म, जब इतिहास के पन्नों पर चड़ते हैं तो समृद्धि, वीरता, दूरदर्शिता, न्याय कहलाते हैं, आपका दिल बहलाते हैं इतिहास गवाह है, कितनी भी परंपरा की वाह-वाह है, हम आज भी वही इंसान है लालच, जुल्म, वहशत, अब भी हमारी शान है, मुबारक हो ! भ्रष्ट समाज की सूचि में अपना ऊँचा स्थान है!

मैं – हिंसा!

"मैं" हिंसा हूँ  कितनी करूँ कोशिश नज़र नेक नहीं होती भांप लेती है, आँक लेती है, "फर्क" कितना भी सर छुपाए उन्हें नाप लेती है "फर्क" है तो दोष है रोष है ! तैयार होता हिंसा का शब्द कोष है, कम है, ज्यादा है वादा, इरादा, फ़रियाद, बंटवारा आकांक्षा, अभिलाषा, ढाढ़स, दिलासा "मैं" अतीतयुक्त है  कब "मैं" रिक्त होगा "आज" में जीने को मुक्त होगा (जे.कृष्णमूर्ति के हिंसा पर उठाये प्रश्नों से उठे प्रश्न)

स्वर्ग सिधार!

आज फिर कोई मर गया! क्या हुआ? किराये का था घर, गया! सादा सा था सच क्यॊं सर गया हकीकत आपकी या कोई गैर है? पसंद आई तो अपनी नहीं तो बैर है? सच बुनियाद है! आपकी ही इबादत  आपकी फ़रियाद है, ये कौन सा हिसाब है भरोसा, यकीं, आमीन कब से सौदा बन गया? आप के गम से सवाल नहीं हैं, पर आँसू समंदर की बूँद हैं, उनका दरिया क्यॊं? सफर जिनका था मुकम्मल हुआ, आज आपका है, कल, कल हुआ!  (मौत की कुछ खबरें और उनसे होती व्यथा को देखकर)

अज्ञात कहाँ?

  हिम्मत के हथियार कहाँ, कश्ती की पतवार कहाँ, खाली हाथों के बोझ को, कंधे ये तैयार कहाँ? दिखती है सबको हिम्मत,पर अब अपनी ललकार कहाँ, काँटों के मौसम में यारब, गुलशन में गुलज़ार कहाँ ? कारोबार नहीं बदले हैं, पर अब वो बाज़ार कहाँ मुहँ मांगे जो दाम लगा दे, अब वो ऐतबार कहाँ? हरदम बिखरे ही बैठे हैं, कब हम हैं तैयार कहा वही मिजाज़, वही तेवर हैं, समझे ऐसे यार कहाँ? पहले थी कमज़ोर हकीकत, अब कहते शैतान यहाँ, मुलजिम ठहरे तेरे यारब, अब गुस्ताखी माँफ कहाँ? साहिल अब भी वही है, लहरों का संसार वही साथ नहीं छुटा है अब भी, हो गए तुम मंझदार कहाँ? सफर लंबा था थोडा, अपना साथ कहाँ छोड़ा जाहिर हो गए सब रास्तों को, अब हम हैं अज्ञात कहाँ? (सफर का एकांत और उससे झूझती सोच के द्वन्द से पैदा)

देर-अंधेर

सुबह के फूल, शाम की धुल चमचमाती गाड़ियां नयी जैसी, बहुत सारे पानी की ऐसी की तैसी, गेंदे से सुसज्जित, पूजा युक्त गाडियाँ भक्तों के हाथों, सिग्नल तोडती हुई, "भगवान मालिक है" अपनी ही दुनिया है, उसमे 'नो एंट्री' कैसी? कहते है आज, बुरे पर अच्छे की जीत है! 'आज' पर इतना संगीन इलज़ाम तिलमिलाते 'आज' को दिलासा, यही रीत है, अब राम की लीला होगी, सीता की कौन सोचे, "एक चादर मैली सी" एक चाय की दुकान पर, टोपी लगाये, कूच हाल्फ़-पैंट टोपी लगाये, और चुस्की लेते, गाँधी(वाद) को तो पहले ही निपटा दिया अब कौन सा सच बाकी है, गुजरात गवाह है, आज सच बहुत खाकी है, टक-टक की लय पर थिरकते पाँव, चमकती रोशिनी, दुनिया रोशन, सबको एहसास है, अँधेरा है चिराग तले, वो जगह बकवास है और सुबह उठ कर देखता हूँ सड़कों पर कचरे का ढेर है (ईद के दूसरे दिन भी हैदराबाद में यही नज़ारा था, हम सब एक हैं!) सूअर हँस हँस कर कह रहे है शुक्र है मालिक! आज देर कहाँ, सिर्फ अंधेर है, दशहरा-दिवाली वगैरा आप को मुबारक हो! (नवरात्री के शो...

पहचान से दो दो हाथ

मैं अपने दायरों में फिर भी बंधा नहीं, उड़ने के लिए मुझे एक आसमां बहुत है   अपनी आँखों से दुनिया को ख़्वाब दिखाते हैं, आप पानी डालते रहिये हम आग बनाते हैं ये माना गहरे पानी में नहीं आपकी नांव के सवार बैठकर साहिल पर हमने भी किये कुछ शिकार वो और होंगे जो कतार बनाते हैं हम वो नहीं जो गिनतियों में आते हैं, समझदार को सिर्फ एक इशारा है, डूबते को तिनके का सहारा है हो जौहरी को हीरे की पहचान तराशने वाले के हाथों में उसकी जान आपको लगते हैं अगर अब भी अनजान चलिए समझिए यही है हमारी पहचान बंजारों के लिए सफर भी एक मक़ाम होए है, शुक्रगुजार हो दिल जो एक पल भी कोई साथ होये है (१९९७ में नौकरी की तलाश में तैयार अपने पहचान पत्र/Resume से उद्वत)

मज़हब, इंसान और ...

राम का नाम , करने लगे काम तमाम , करते हैं खुदा का सौदा , और रंगीन शाम कौन कहता है अल्लाह के बंदे हैं ? दुनिया गटर है , और कीड़े गंदे हैं ! रख दिया आदमी का नाम ' आम ' एक के खून को बनाते है दूसरे का बाम... अपने मुल्क में इंसानों की फसल अच्छी है,  जब चाहे काट लो, छांट लो , बाँट लो, सप्लाई ज्यादा, डिमांड कम हो, तो कौडिओं के दाम लगते है, और फसल स्लम में हो तो पैदावार/यील्ड भी जबरदस्त, दो बीघा जमीं में बीस परिवार, इस से पहले की कोई सरकारी योजना की बीमारी लगे काट लो, छांट लो , बाँट लो, अब अल्ला मियां को थोडा और काम होगा, बन्दों तक कैसे पहुंचे, सजदा होते सरों को तो लाऊड- स्पीकर कान होगा, और वहां की आवाज़ वर्तमान की मुलाजिम है और जो अल्ला मियां से ज्यादा अपनी सोच पर यकीं रखते है दुनिया की चमक, रफ़्तार, और गरज़ अब सबकी अकीदत में सेंध लगा चुकी है सलाम अब सलामती हो गया है, वालेकुम किसी कोने में खो गया है!

खूबसूरती

खूबसूरती क्या है...     क्या है? दिल ओर दिमाग जब एक होकर किसी मधुर सच्चाई से मिलते हैं आराम से ....निश्चिन्त होकर बिना किसी रूकावट के उस पल की खूबसूरती का एहसास क्या है? खूबसूरती...! इसके मायने जिंदगी को लाज़मी हैं पर क्या हम इस खूबसूरत एहसास की तरफ जीवंत हैं? या फिर, अपने विचारों की सुरंग में ही अपने जीवन का अंत है!   नदी, तालाब, पहाड़ों से बहता हरियाली का सैलाब इस खूबसूरती के बीच रहकर हम, अगर धुप-छाँव नहीं खेल रहे, तो क्या हम जी रहे हैं??? (जिद्दू कृष्णमूर्ति की चहलकदमी और उस से जुड़े उनके चिंतन से अनुरचित)

हो सकें तो!

चलते हैं उस रास्ते जो खत्म नहीं होते, चोट लगती है हमें पर जख्म नहीं होते! महबूब की तमाम मुश्किलें हम से हैं हम से ही कहते हैं काश! हम नहीं होते आदतों से मजबूर अब वो नहीं होते रात-दिन, शामों-सहर अब हम नहीं होते नींद में तडपकर हाथ थाम लेते हैं, ख्वाबों में उनके, क्या हम नहीं होते? कितनी गर्दिशें झेली हैं तो खुद को समझा है ओर कोई होता, तो बेशक! हम नहीं होते मतलब निकलता है तब तक साथ सबका है मुश्किलों में तो गोया हम, हम नहीं होते! मोहब्बत में उनकी अब भी वोही ज़ज्बा है, बाँहों में उनकी पर अब हम नहीं होते

कॉमनवेल्थ - एक खेल!

सब की मिल्कियत खेल बन गयी है नंगी हकीकत जेल बन गयी है, लगे हैं फर्श को चमकाने में, संगमरमर पर तेजाब बह रहा है उन रंगों को धोने में जो हमारी संस्कृति को पीलिया ग्रस्त दिखा रहे हैं, तेजाबी धुंए में कैमरे और कलम से सेंध लगाते मदहोश खबरी ब्रेकिंग न्यूज़/breaking news पर झूम रहे हैं, पैदल दूरियों पर निराशा, गुस्सा, कुंठा दूषित सांसे ले रही है जुकामी बच्चे अपनी बीमारी का स्वाद लेते कचरे के मैदान में पिचकी, तिरस्कृत गेंदों को आसमान दिखा रहे हैं ये किसी की दौलत नहीं,  सबकी कॉमन वेल्थ है  ये खेल तो चलता रहेगा. आप तमाशे की तैयारी करें खेल भावना मत भूलिए और जूते पहन कर जाइए अगर छत गिरती है तो भागना मत भूलिए क्या आप इन खेलों का हिस्सा बनने को तैयार हैं? तो चलिए कलम-आडी करिये, साथी हाथ बढाना ....

मेरा भारत महान !

भारत एक देश है या बेबसी में वैश्या बनी माँ का भेष है एक ही सच का सब ऐश है हर मुश्किल का हल सिर्फ कैश है लो कर लो बात! बदलाव को क्या चाहिए लात या हाथ, मज़बूरी के हाथ, ताकत की लात, कुछ लोग मनवा लेते हैं अपनी हर बात , गरीबों हटाओ, मंदिर बनाओ सवाल ? देश नक़्शे में खिंची लकीरों से परिभाषित है या रहने वालों की आशाओं से उजागर या पस्त हुई सांसों में अस्त बड़ी सड़कें, ऊँचे मकान, सुगर फ्री पकवान, विदेशी कंपनियां, अप्रवासी भारतीय मेहमान, मेड इन इंडिया सामान विदेशों में बिकता है, गेहूँ गोदामों में फिंकता है आज हमारा बाजार गरम है बस शर्त इतनी है की त्वचा गोरी ओर नरम है, हाँ, हैं कुछ लोग जो तरक्की के साथ नहीं चल पा रहे नींद नहीं आती, इसलिए सपने भी नहीं आ रहे, जाहिर है, देश को आगे ले जाना है तो, नज़र अंदाज़ करना होगा! उस वर्ग को, जो अपनी भूख को ही खा रहे, सच है, गरीबी भी एक नशा है, एक बार चरस छुट जाये, पर गरीबी, ये नशा, जो ना करवा दे वो कम, माँ, बेटी को सजा रही है, ये भारत देश है या बेबसी में वैश्या बनी माँ का भेष है!

कितने सच?

क्या सच आजाद होते हैं?  अकेले? अपने आप में पूर्ण? आत्मनिर्भर दो सच जब साथ आते हैं तो सामने होते हैं या बगल में इंसान जब सामने आते है तो नागासाकी पहुँच जाते हैं, अगर आप कहते हैं दुनिया सुन्दर है तो आप शायद बन्दर हैं टुकुर टुकुर देखते, पैरों पर खड़ा होना सीख गए पर ध्यान शायद अब भी उस आम में अटका है जिसकी गुठली के दाम नहीं होते दुनिया चीख कर कह रही है "ये आदमी किसी काम का नहीं" पर आप कान नहीं होते! अगर आप रामभरोसे हैं तो याद कीजिये? सीता का हश्र मर्यादा या मर्द आधा आज का सच विकास है! गला तर, पेट भर प्यासे के भूख कि किस को खबर किसके नज़र ऊँचे मकानों में मौत भी दावत है ओर जिनको छत नहीं उनकी ये आदत है अमीर ओर अमीर, गरीब ओर गरीब ये अब एक कहावत है, किवदंती, क्या सोचें उनको जिनकी पहचान है सिर्फ गिनती, ८०% प्रतिशत, २० रूपये रोज, " सच " कहते है बड़ा बलवान पर उसकी तो सुपारी दे दी है, सर उठाओ सामने है पहलवान, और आज कि द्रौपदी के भी वही हाल है साडी जितनी कम, बाज़ार उतना गर्म, पापी पेट का सवाल है ...

दूध का दूध, पानी का पानी

सब कहते हैं शमां जला देती ही परवानों को, कौन कहे कि शमां को जलाया किसने है ? मर्द को औरत पर कितना प्यार आया है दिल नहीं टूटे किसी का हरम बनाया है! वो सहें दर्द तो उनकी नियति है आप करते अहसान, कि जिनकी गिनती है? कहने को तो इश्क में हर चीज़ जायज़ है फिर क्यों कर किसी कि हस्ती नाजायज़ है ? गले में मंगल माथे पर सिन्दूर कहीं सुना था प्यार को बंधन नहीं मंजूर! हर शहर में चमड़े का धंधा होता है सच कहा किसी ने प्यार अंधा होता है? 'अवसर' आने पर उनको पूज लेते हैं असर मर्दानिगी में इज्जत भी लुट लेते हैं? कभी कहते बला है कभी अबला बन गयी कमजोरी तो दल बदला दूध का दूध, पानी का पानी मिलावट नहीं है, अर्थात जनानी आँचल में दूध है, आँखों में पानी (मानवता के बेहतर अर्धांश को समर्पित)

कामयाबी

कामयाबी पैरों में बंधी एक जंजीर है, कैद करती एक तस्वीर है अपेक्षाओं की लक्ष्मण रेखा आकांक्षाओं का रुख करी हवा एक का सवा, निन्यानवे का फेर, कहीं कुछ, अगर-मगर, सवालों के ढेर, ऊंचाई पर नजर,   नीचे होती जमीं, अब कामयाबी आपके सर लदा सामान है कहीं खो ना जाये इसी में अटकी जान है देर सबेर या शायद अंधेर, पक्के इरादे? चट्टान हो सकते है पर मुसाफिर और मेहमान नहीं, जायके आदत बन जाएँ तो असर नहीं होते तय रास्तों पर सफर नहीं होते कामयाबी को दूसरे रास्ते नजर नहीं होते गलियां कभी दिखती नहीं मोड़ अनजाने होते है जो खोज में निकले वो फितरत, दीवाने होते हैं आप अगर कामयाब हैं तो आपका रास्ता तय है उस पर आगे जय है उसके बगैर कुछ भी और भय है, आगे आपकी मर्ज़ी आपको कामयाबी कबुल है या जिंदगी की गत बदलना आपका उसूल है!  

रक्षा बंधन - आँखों को एक और अंधन!

रक्षाबंधन की फिर बात आई,  बन जायेंगे सब भाई, कसाई आज फिर भाई! पत्नियों को मारने वाले, बहनों की रक्षा की बात करेंगे औरतों को बाज़ार में बिठाने वाले भी, अपना माथा तिलक करेंगे सीटियाँ आज भी बजेंगी, फब्तियां आज भी कसेंगी नेक इरादे भी औरतों को 'तुम कमजोर हो' याद दिलाएंगे हाथ में धागा और मुंह मीठा कर आयेंगे ये बंधन कच्चे धागों का है, या जिम्मेदारियों से भागों का है क्या बाजार में बैठी सारी बहने , बेभाई है? या अपनी बीबियाँ मारने -जलाने वाले सब बेबहन? सब कर के सहन, मन में छुपा के सब गहन फिर भी आज के दिन क्यों बनती है तू बहन? ये आशावाद पर विश्वास है या निराशा की ठंडी सांस है ?! डूबते को तिनके का सहारा है या हम में से हर कोई परंपरा का मारा है ? कल फिर से वही दुनिया होगी और वही कहानी आँचल में दूध, और आँखों में पानी, नामर्द मर्दों की बन कर जनानी! कल फिर सड़क से अकेले गुजरती लड़की बेभाई हो जायेगी !