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सेल्फ़ी सही!

कान सुनते हैं,
आप गुनते नहीं?
सोच परोसी वाली
आप बुनते नहीं?
इरादे बुलंदी के,
और आप चुनते नहीं?

ये क्या दौर है,


आइनों के दुसरीं तरफ कोई और है!
उसी की सोच है
उसी का ज़ोर है!!
उतना ही मानते हैं
हम
बस उतना ही जानते हैं!

बस यही समझ है!


खोज़, सर्च हो गई है,

एल्गोरिथम का कर्ज हो गई है?
जो देखते हैं,
वही बारहा नज़र आता है,
एक समीकरण,
हमसे भेड़-चाल चलवाता है!

और ये भी सच है?


उंगलियाँ हमारा दिल बनी हैं!
छू लेती हैं, बस वही जगह
सटीक,
जो हुक़्म मेरे आका!
अब दिल को पाउडर-क्रीम
हमारी 5.3 टचस्क्रीन!

क्या ये भी आज़ादी है?


अब हम से बेहतर

हम को कौन जानेगा,
सेल्फ़ी से ही हमें पहचानेगा!
सवाल-जवाब, तलाश, 

मैं - कौन, क्यों, कैसे?
ये सवाल क्या खास?
हर लम्हा, हर जगह, 

हर मौके,
मैं वही हूँ, 

सेल्फ़ी सही हूँ!!

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