न कोई आवाज़ न कोई अंदाज़
ख़ामोशी भी उदास
ऐसा तो नहीं की तुम हो नहीं
काम की एक लिस्ट है,
कागज बिखरे हैं
और बातें अधूरी
रातें गुजर रही हैं
दिन पलक झपकते मुकर जाते हैं
चल रहे हैं
पर खबर नहीं
दूर जा रहे हैं या पहुँच रहे हैं
कागज बिखरे हैं
और बातें अधूरी
रातें गुजर रही हैं
दिन पलक झपकते मुकर जाते हैं
चल रहे हैं
पर खबर नहीं
दूर जा रहे हैं या पहुँच रहे हैं
हिसाब में कमजोर है
या हम नज़र ही नहीं आते
अकेले
कभी गिनतियों में नहीं आते
चहेरा देखते हैं या तस्वीर
क्यों नहीं है थोडा और करीब?
क़दमों के निशाँ मंजिल नहीं हैं
गुजरे हैं हम
इस से कहाँ इंकार हैं
हम उमींदों के फकीर हैं
गुजरे लम्हों से आजाद
कोशिश तो है
आवाज़ आप तक पहुँचती होगी
दें तो भला
न दे तो क्या खला
घूम के फिर आयेंगे
खोइये मत
हम उम्मीद के फकीर हैं
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें