उम्मीद को आसमाँ बनाने से क्या होगा
यकीन को जमीं कीजे!
कल क्यों पेशानी पर लिखा है
आज सफ़र को हसीं कीजे!!
जिन्दगी अपने हाथों में, नज़र आती है
उम्मीद, सारी बातों में नज़र आती है
सच्चाई, हंसती खेलती दिखती है
इबादत, इरादों में नज़र आती है!
अब आपकी अपने दिल पर नज़र होगी
किसकी आहट पर धड़कन असर होगी
पास आयेंगे तो पूरी कसर होगी
गुजरते लम्हों की रहगुजर होगी
ये साथ मिल कर बनाया है,
दीवारें अपनी हमसाया हैं
काम बहुत हैं कब तक आगोश में बैठें
बड़ी जतन से ये घोंसला बनाया है
रास्ते में आये तो ख्वाबों से भी मिल लेंगे
फुर्सत में आये तो यादों से भी मिल लेंगे
बादलों की छांव हमसफ़र नहीं होती
घड़ी दो घड़ी उस से भी मिल लेंगे
दूर के ढोल सुनने होते हैं, पास के बजाने होते हैं
ऐसे मौसम आयें तो, कैसे बहाने होते हैं !
मासूम इरादों के बादल भी दीवाने होते हैं
कौन कहता है की बचपन के ज़माने होते हैं ....
सोचो तो दीवार है देखो तो दीदार
सोचो तो इज़हार है देखो तो प्यार
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंरास्ते में आये तो ख्वाबों से भी मिल लेंगे
जवाब देंहटाएंफुर्सत में आये तो यादों से भी मिल लेंगे
बादलों की छांव हमसफ़र नहीं होती
घड़ी दो घड़ी उस से भी मिल लेंगे
गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...