सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सफर के नुस्खे


उम्मीद को आसमाँ बनाने से क्या होगा
यकीन को जमीं कीजे!
कल क्यों पेशानी पर लिखा है
आज सफ़र को हसीं कीजे!!


जिन्दगी अपने हाथों में, नज़र आती है
उम्मीद, सारी बातों में नज़र आती है
सच्चाई, हंसती खेलती दिखती है
इबादत, इरादों में नज़र आती है!


अब आपकी अपने दिल पर नज़र होगी

किसकी आहट पर धड़कन असर होगी

पास आयेंगे तो पूरी कसर होगी

गुजरते लम्हों की रहगुजर होगी








ये साथ मिल कर बनाया है,
दीवारें अपनी हमसाया हैं
काम बहुत हैं कब तक आगोश में बैठें
बड़ी जतन से ये घोंसला बनाया है

रास्ते में आये तो ख्वाबों से भी मिल लेंगे 
फुर्सत में आये तो यादों से भी मिल लेंगे
बादलों की छांव हमसफ़र नहीं होती
घड़ी दो घड़ी उस से भी मिल लेंगे




दूर के ढोल सुनने होते हैंपास के बजाने होते हैं
ऐसे मौसम आयें तोकैसे बहाने होते हैं !
मासूम इरादों के बादल भी दीवाने होते हैं
कौन कहता है की बचपन के ज़माने होते हैं ....


सोचो तो दीवार है देखो तो दीदार 
सोचो तो इज़हार है देखो तो प्यार

टिप्पणियाँ

  1. सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. रास्ते में आये तो ख्वाबों से भी मिल लेंगे
    फुर्सत में आये तो यादों से भी मिल लेंगे
    बादलों की छांव हमसफ़र नहीं होती
    घड़ी दो घड़ी उस से भी मिल लेंगे


    गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
    बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पूजा अर्चना प्रार्थना!

अपने से लड़ाई में हारना नामुमकिन है, बस एक शर्त की साथ अपना देना होगा! और ये आसान काम नहीं है,  जो हिसाब दिख रहा है  वो दुनिया की वही(खाता) है! ऐसा नहीं करते  वैसा नहीं करते लड़की हो, अकेली हो, पर होना नहीं चाहिए, बेटी बनो, बहन, बीबी और मां, इसके अलावा और कुछ कहां? रिश्ते बनाने, मनाने, संभालने और झेलने,  यही तो आदर्श है, मर्दानगी का यही फलसफा,  यही विमर्श है! अपनी सोचना खुदगर्जी है, सावधान! पूछो सवाल इस सोच का कौन दर्जी है? आज़ाद वो  जिसकी सोच मर्ज़ी है!. और कोई लड़की  अपनी मर्जी हो  ये तो खतरा है, ऐसी आजादी पर पहरा चौतरफा है, बिच, चुड़ैल, डायन, त्रिया,  कलंकिनी, कुलक्षिणी,  और अगर शरीफ़ है तो "सिर्फ अपना सोचती है" ये दुनिया है! जिसमें लड़की अपनी जगह खोजती है! होशियार! अपने से जो लड़ाई है, वो इस दुनिया की बनाई है, वो सोच, वो आदत,  एहसास–ए–कमतरी, शक सारे,  गलत–सही में क्यों सारी नपाई है? सारी गुनाहगिरी, इस दुनिया की बनाई, बताई है! मत लड़िए, बस हर दिन, हर लम्हा अपना साथ दीजिए. (पितृसता, ग्लोबलाइजेशन और तंग सोच की दुनिया में अपनी ...

हमदिली की कश्मकश!

नफ़रत के साथ प्यार भी कर लेते हैं, यूं हर किसी को इंसान कर लेते हैं! गुस्सा सर चढ़ जाए तो कत्ल हैं आपका, पर दिल से गुजरे तो सबर कर लेते हैं! बारीकियों से ताल्लुक कुछ ऐसा है, न दिखती बात को नजर कर लेते हैं! हद से बढ़कर रम जाते हैं कुछ ऐसे, आपकी कोशिशों को असर कर लेते हैं! मानते हैं उस्तादी आपकी, हमारी, पर फिर क्यों खुद को कम कर लेते हैं? मायूसी बहुत है, दुनिया से, हालात से, चलिए फिर कोशिश बदल कर लेते हैं! एक हम है जो कोशिशों के काफ़िर हैं, एक वो जो इरादों में कसर कर लेते हैं! मुश्किल बड़ी हो तो सर कर लेते हैं, छोटी छोटी बातें कहर कर लेते हैं! थक गए हैं हम(सफर) से, मजबूरी में साथ खुद का दे, सबर कर लेते हैं!

हाथ पर हाथ!!

मर्द बने बैठे हैं हमदर्द बने बैठे हैं, सब्र बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अल्फाज़ बने बैठे हैं आवाज बने बैठे हैं, अंदाज बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! शिकन बने बैठे हैं, सुखन बने बैठे हैं, बेचैन बने बैठे हैं, बस बैठे हैं! अंगार बने बैठे हैं तूफान बने बैठे हैं, जिंदा हैं शमशान बने बैठे हैं! शोर बिना बैठे हैं, चीख बचा बैठे हैं, सोच बना बैठे हैं बस बैठे हैं! कल दफना बैठे हैं, आज गंवा बैठे हैं, कल मालूम है हमें, फिर भी बस बैठे हैं! मस्जिद ढहा बैठे हैं, मंदिर चढ़ा बैठे हैं, इंसानियत को अहंकार का कफ़न उड़ा बैठे हैं! तोड़ कानून बैठे हैं, जनमत के नाम बैठे हैं, मेरा मुल्क है ये गर, गद्दी पर मेरे शैतान बैठे हैं! चहचहाए बैठे हैं,  लहलहाए बैठे हैं, मूंह में खून लग गया जिसके, बड़े मुस्कराए बैठे हैं! कल गुनाह था उनका आज इनाम बन गया है, हत्या श्री, बलात्कार श्री, तमगा लगाए बैठे हैं!!