रंग बिखरे हैं जमीं पर इकट्ठा का कीजे
सुन्दर को सपनों की सजा का दीजे
पंख सबके हैं एक दिन उड़ जायेंगे
जमीं अपनी होगी तभी आसमाँ अपनाएंगे
हुनर सब को है बस यकीन दे दीजे
हंसी खो जाये इतनी कन्धों को उम्मीद का दीजे
क्यों नहीं हो सकते मंजिलों से आजाद
उठते क़दमों को लकीर का दीजे
सब के अपने समंदर हैं तर जाएंगे,
आपके कुँए में बेवजह फंस जाएंगे,
उम्मीदों के जाल गला घोंट देंगे,
अपनी नज़रो से आप समझ पाएंगे????
दुनिया चलती है क्योंकि मधुमक्खी उड़ती है,
अपने आइनों को ज़रा बड़ा कर लीजे,
हमारा होना मुर्गी-अंडे का सवाल नहीं है,
बस अपने पैरों पर खड़े हो लीजे!
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